Monday 20 May 2013

मनमोहन ने ली से की वार्ता, घुसपैठ पर भारत ने जतायी चिंता


नई दिल्ली : चीन को कड़ा संदेश देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लद्दाख में हाल में हुई चीनी घुसपैठ पर रविवार की रात गहरी चिंता जताई। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग से कहा कि सीमा पर शांति के बिना द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे तक सौहार्द्रपूर्ण एवं स्पष्ट बातचीत हुई। 

दो माह पहले प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर आये 57 वर्षीय ली ने मनमोहन सिंह से उनके आधिकारिक आवास पर मुलाकात की। इस अवसर पर दोनों ही पक्षों के चुनिंदा सहयोगी मौजूद थे। दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता में जटिल सीमा विवाद, सीमा पार करने वाली नदियों एवं व्यापार घाटे पर चर्चा हुई। 

दोनों नेताओं के बीच यह बैठक चीनी सेना द्वारा लद्दाख की देपसांग घाटी में 19 किलोमीटर तक भीतर घुसने के करीब एक माह बाद हो रही है। इस मुद्दे का समाधान दो ही हफ्ते पहले हुआ है। दोनों नेताओं की बैठक का जोर उस गतिरोध पर रहा जबकि सिंह ने चीन द्वारा यथास्थिति का उल्लंघन किये जाने पर भारत की गंभीर चिंता का इजहार किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति कायम रखना अच्छे द्विपक्षीय संबंधों के लिए आवश्यक है। इस बिन्दु पर ली ने सहमति जतायी।

मनमोहन एवं ली की सीमित वार्ता के बाद रात्रि भोज हुआ। इसमें संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, भाजपा नेता अरूण जेटली एवं माकपा महासचिव प्रकाश करात भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री ने प्राथमिकता वाले अन्य मुद्दों को भी ‘सीधे तौर पर’ उठाया। इनमें सीमा पार से आने वाली नदियों के जलप्रवाह को बरकरार रखना विशेषकर चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर तीन अतिरिक्त बांध को मंजूरी दिये जाने का मुद्दा शामिल है। 

भारत चीन पर इस बात के लिए जोर डाल रहा है कि जल मुद्दों के हल के लिए जल आयोग या अंतर सरकारी वार्ता के जरिये विचार विमर्श हो क्योंकि दोनों देशों के बीच मौजूदा विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र केवल जल विज्ञान संबंधी सूचनाओं की भागीदारी तक सीमित है। सूत्रों ने बताया, ‘प्रधानमंत्री ने सकारात्मक लेकिन दृढ़ता के साथ अपने विचार व्यक्त किये।’ उन्होंने यह भी कहा कि कल की लंबी वार्ता के लिए जमीन अब तैयार हो गयी है। भारत दोनों देशों के सीमा क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा को स्पष्ट करने एवं इसकी पुष्टि पर जोर दे रहा हैए अभी इसका अंतिम समाधान नहीं हुआ है। 

1993 और 1996 में हुए समझौतों में की गयी व्यवस्थाओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में अलग अलग धारणाएं हैं। आधिकारिक सूत्रों ने पूर्व में कहा था कि बाद के वर्षों में चीनी पक्ष की ओर से यह वार्ता में से हटा लिया गया। संभवत: इसका कारण यह भावना रही होगी कि इसे गलत सीमा के रूप में लिया जा सकता है। 

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि चीन द्वारा प्रस्तावित सीमा रक्षा सहयोग समझौते पर विचार विमर्श किया जा रहा है। मनमोहन एवं ली के बीच हुई मुलाकात के दौरान विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, विदेश सचिव रंजन मथाई और चीन में भारतीय राजदूत एस जयशंकर सहित कई वरिष्ठ अधिकारी भारतीय पक्ष की ओर से मौजूद थे। 

प्रधानमंत्री ने व्यापार घाटे पर ध्यान दिये जाने की जरूरत पर बल दिया जो चीन के पक्ष में है। भारत चीन पर इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि उसे चीनी बाजार में और अधिक पहुंच की इजाजत मिले। वर्ष 2012 में द्विपक्षीय व्यापार 66 अरब अमेरिकी डालर रहा जो 2011 में 74 अरब डालर था। दोनों देशों ने 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार के लिए 100 अरब डालर का लक्ष्य तय किया है। 

भारत चीन की तुलना में बढ़ते व्यापार घाटे का सामना कर रहा है। 2011 के अंत तक भारत का व्यापार घाटा 27 अरब अमेरिकी डालर था। जनवरी 2013 में जारी चीनी व्यापार आंकड़ों के अनुसार 2012 तक यह बढ़कर 29 अरब डालर हो गया। व्यापार के अलावा भारत चीन से होने वाले परियोजना निर्यात का भी सबसे बड़ा बाजार है। चीनी आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2011 तक सकल चीनी निवेश 57 करोड़ 57 लाख डालर था जबकि चीन में भारतीय निवेश 44 करोड़ 17 लाख डालर था। 

ली आज शाम तीन बजे यहां पहुंचे। उनके साथ सरकारी अधिकारियों एवं व्यवसायियों का उच्च स्तरीय शिष्टमंडल भी आया है। विदेश राज्य मंत्री ई अहमद एवं मथाई सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। इससे पूर्व ली के आगमन के समय जारी एक लिखित बयान में चीनी प्रधानमंत्री ने चीनी सरकार एवं 1.3 अरब चीनी लोगों की ओर से भारत सरकार एवं 1.2 अरब भारतीयों को शुभकामनाएं एवं बधाई दी। चीनी प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन और भारत नदियों एवं पर्वतों से जुड़े मित्र पड़ोसी हैं। दोनों देशों के बीच 1950 में राजनयिक संबंध कायम होने के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में विकास हो रहा है। 

ली ने कहा कि 21वीं शताब्दी में दोनों देशों के बीच राजनीतिक संवाद ज्यादा हो रहा है और व्यावहारिक सहयोग में विस्तार हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन दिनों चीन एवं भारत अपने विकास को तेज कर रहे हैं, अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए मजबूत प्रयास कर रहे हैं, लोगों के जीवन को बेहतर बना रहे हैं और हितों के बेहतर सम्मिलन के लिए काम कर रहे हैं।

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