Friday 29 March 2013

ट्रेन में अब बच्चों का पूरा टिकट लगेगा


ट्रेन में अब पांच से ग्यारह साल के बच्चों को भी यात्रा करने पर छूट नहीं मिलेगी। रेलवे उनके अभिभावकों से पूरा किराया वसूलेगा। ट्रेन में सफर के दौरान जिन यात्रियों ने पहले टिकट कराया था उनसे टीटीई ने अतिरिक्त किराया वसूलना शुरू भी कर दिया है।

रेल मंत्री द्वारा 22 जनवरी को पेश बजट में किराए में वृद्धि के लिए कई नए स्लैब बनाए गए थे। यानी स्लीपर श्रेणी में 200 किमी. तक, थर्ड व सेकेंड एसी में 300, फर्स्ट एसी में 100 और चेयर कार में 150 किमी का किराया यात्री को देना पड़ेगा। भले यात्री इससे कम दूरी सफर तय करे। इस नये स्लैब के तहत बच्चों को भी इतनी दूरी का सफर तय करने पर कोई छूट नहीं मिलेगी।

रेलवे अधिकारियों ने बताया कि 5 से 11 साल के बच्चों को सफर के दौरान छूट मिलती थी। यह छूट अब भी बरकरार है। लेकिन यह छूट तभी मिलेगी जब बच्चे स्लीपर श्रेणी में 200 किमी से अधिक, थर्ड व सेकेंड एसी में 300 किमी से अधिक, फर्स्ट एसी में 100 किमी से अधिक और चेयर कार कोच में 150 किमी से अधिक सफर करने पर ही मिलेगी।

अगर इससे कम सफर करते हैं तो यह छूट खत्म हो जाएगी। और वयस्क यात्री के बराबर बच्चों का किराया भी लगेगा।

ब्राजीलियन लेडी डॉक्टर ने की 300 मरीजों की हत्या


पराना (ब्राजील)।। ब्राजील की हेल्थ मिनिस्ट्री के एक जांचकर्ता का कहना है कि एक ब्राजीलियन डॉक्टर जिसे 7 मरीजों की हत्या में पकड़ा गया था, दरअसल वह 300 मरीजों की मौतों के लिए जिम्मेदार है। इस डॉक्टर ने आईसीयू में बेड खाली कराने के लिए सातों हत्याएं की थीं।

सरकारी पक्ष का कहना है कि इवैंगिलिकल अस्पताल में डॉ. वर्जीनिया सोरेस डिसूजा और उसकी मेडिकल टीम ने पहले तो उनके मसल्स को शिथिल करने वाली दवाएं दीं और फिर उनकी ऑक्सिजन सप्लाई कम कर दी। सारे मरीजों की मौत एसपिक्सिया नामक बीमारी से हुई। यह अस्पताल दक्षिणी शहर क्यूरिटिबा में है। यह ब्राजील का मेट्रोपॉलिटन सिटी है।

गिरफ्तार डॉक्टर डिसूजा की उम्र 56 साल है और वह विडो है। उसे पिछले महीने पकड़ा गया था और उस पर सात मरीजों की हत्या का आरोप है। इस डॉक्टर के मातहत काम करने वाले तीन अन्य डॉक्टर, तीन नर्सें और एक फिजियोथेरेपिस्ट पर भी हत्या का आरोप है। पराना स्टेट के अभियोगकर्ताओं का कहना है कि डॉ. डिसूजा के फोन के वायरटेप से पता चला है कि उसने यह हरकत अस्पताल के बेड खाली कराने के लिए की, जिससे अन्य मरीजों को बेड मिल सके।

ब्राजीलियन मीडिया को जारी उसकी रिकॉर्डिंग में सुनाई दे रहा है कि वह आईसीयू को खाली कराना चाहती थी। उन्हें वहां ज्यादा भीड़ देखकर थोड़ा खल रहा था। डॉ. डिसूजा के वकील इलियास मत्तार असद ने कहा कि जांचकर्ताओं ने उन्हें गलत समझा और वह खुद को निर्दोष साबित करेंगी।

डॉ. डिसूजा जिस अस्पताल की इंचार्ज थी, जांचकर्ताओं ने पिछले सात साल में उनके कार्यकाल के दौरान 1700 मेडिकल रेकॉर्ड्स निकलवाए हैं। इन सभी 300 मरीजों की मौत सात सालों में हुई थी। ब्राजील हेल्थ मिनिस्ट्री द्वारा तैनात मुख्य जांच अधिकारी डॉ. मारियो लोबैटो ने कहा कि अभी तक हमने 20 से ज्यादा केसों में सबूत जुटा लिए हैं और 300 केसों की जांच जारी है।

अगर अभियोजन पक्ष यह साबित कर ले जाता है कि डॉ. डिसूजा ने 300 मरीजों की हत्याएं की हैं तो यह विश्व का सबसे बड़ा सीरियल किलर केस होगा। अभी तक इससे पहले सबसे कुख्यात इंग्लिश डॉक्टर हेरॉल्ड शिपमैन को माना जाता है, जिसने 215 मरीजों की हत्याएं की थीं।

Thursday 28 March 2013

क्रिकेटर जेसी राइडर झगड़े में घायल, कोमा में गए


क्राइस्टचर्च। न्यूजीलैंड के हरफनमौला खिलाड़ी जेसी राइडर क्राइस्टचर्च में एक पब के बाहर झगड़े में घायल हो गए। उनके सिर में गंभीर चोटें आई हैं और वह कोमा में चले गए हैं।

28 वर्षीय राइडर आइपीएल में खेलने के लिए उड़ान भरने वाले थे। इस साल उनका करार दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ है। उन्हें लगभग तीन लाख डॉलर में अनुबंधित किया गया है। इससे पहले वह रॉयल चैलेंजर बेंगलूर और पुणे वॉरियर्स के लिए खेल चुके हैं।

न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने ट्वीट करते हुए राइडर के प्रति सहानुभूति और समर्थन व्यक्त किया है। वहीं उनके साथी खिलाड़ी उनके जल्द ठीक होने की कामना करते हुए सोशल मीडिया पर संदेश भेज रहे हैं।

गौरतलब है कि अत्यधिक शराब के सेवन के बाद झगड़े के कारण पहले भी वह विवाद में आ चुके हैं और टीम से बाहर हो चुके हैं। बोर्ड ने पहले उनकी विशेषज्ञों से काउंसलिंग भी करवाई थी।

राइडर ने न्यूजीलैंड की तरफ से अब तक 18 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें उन्होंने करीब 41 की औसत से 1269 रन बनाए हैं। उन्होंने तीन शतक लगाए हैं। वहीं 39 वनडे मैचों में उन्होंने 34 की औसत से 1100 रन बनाए हैं।

Monday 25 March 2013

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा जल्द!


बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुहिम सफल होती दिख रही हैं। केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि जल्दी ही वह राज्यों का पिछड़ापन तय करने वाले मानकों में बदलाव कर देगी। इसके लिए सरकार तैयारी कर रही है और अगले दो महीने में इस संबंध में ठोस नतीजे दिख सकते हैं।

इसी महीने नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली में विशाल रैली की थी। बिहार के मुख्यमंत्री लगातार मांग कर रहे हैं कि केंद्र राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर उसे दी जाने वाली केंद्रीय सहायता में वृद्धि करे। इसके लिए नीतीश ने वित्त मंत्री पी चिदंबरम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मुलाकात की थी।

सरकार की मंशा अब किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की नहीं है, बल्कि सरकार राज्यों का पिछड़ापन तय करने वाले मानकों को ही बदलना चाहती है। सरकार का मानना है कि केवल पहाड़ी राज्य या अंतरराष्ट्रीय सीमा लगना ही पिछड़ेपन का मानक नहीं हो सकता। अब जरूरत स्वास्थ्य, शिशु मृत्यु दर, प्रसव के दौरान होने वाली मौतें और राज्य की प्रति व्यक्ति आय को मानकों में शामिल करने की है। मानकों में बदलाव के बाद बिहार के साथ-साथ ओडिशा, झारखंड, गोवा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान पिछड़े राज्यों की श्रेणी में शामिल हो सकते हैं। वित्त मंत्री ने 28 फरवरी को संसद में पेश अपने बजट में भी इस बात के संकेत दिए थे कि सरकार पिछड़ेपन के मानकों को बदलने पर विचार कर रही है। वैसे इससे पहले भी चिदरंबरम संसद में चर्चा के दौरान यह भरोसा दे चुके हैं।

सूत्रों के मुताबिक अब सरकार ने इस पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है। संकेत हैं कि अगले दो महीने में सरकार नए मानकों की घोषणा कर सकती है।

इसके साथ ही सूत्रों ने बताया है कि कर्ज में फंसे पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब को वित्त आयोग थोड़ी राहत दे सकता है।

Sunday 24 March 2013

ऑनलाइन रेलवे टिकट बुक करवाना हुआ महंगा!


ट्रेन में सफर करने वालों के लिए लगातार मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। ऑनलाइन रेलवे टिकट बुक करवाने वालों पर गाज गिर सकती है। एक अप्रैल से यात्रियों को सर्विस टैक्स भी देना होगा। भारतीय रेल खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) अब तक यह टैक्स चुका रहा था। परन्तु एक अप्रैल से यह टैक्स यात्रियों को देना होगा। स्लीपर श्रेणी के दस रुपए के सर्विस चार्ज पर 1.23 रुपए सर्विस टैक्स और एसी श्रेणी के 20 रुपए के सर्विस चार्ज पर 2.46 रुपए सर्विस टैक्स है। 

निगम अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2012 के मध्य में केंद्र सरकार की ओर से विभिन्न सेवाओं पर सर्विस टैक्स लगाया गया था। इसके तहत आरक्षण काउंटर से बुक होने वाले टिकटों पर तो यात्रियों से सर्विस टैक्स वसूला जा रहा था, जबकि निगम ऑनलाइन टिकटों पर यह कर नहीं ले रहा था। इससे आईआरसीटीसी को ढाई करोड़ रुपये से अधिक अपनी जेब से देने पड़े हैं। निगम ने तय किया है कि अब ई-टिकट कराने वाले यात्रियों से सर्विस टैक्स वसूला जाएगा। यह टैक्स एक अप्रैल से जारी होने वाले टिकटों पर लगेगा।

Friday 22 March 2013

आज सलमान-सैफ के खिलाफ तय होंगे आरोप


मुंबई।। यह महज संयोग है कि संजय दत्त को मुंबई ब्लास्ट केस में पांच साल की सजा होने के दो दिन बाद ही उनके बेहद करीबी दोस्त सलमान खान की किस्मत का फैसला भी कोर्ट में होगा। जोधपुर की एक अदालत में आज काले हिरन के शिकार के मामले में आरोप तय किए जाएंगे।

इस केस में सलमान खान के साथ सैफ अली खान, तब्बू, सोनाली बेंदे और नीलम जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। फिल्म \'हम साथ साथ हैं\' की शूटिंग के दौरान काले हिरन के शिकार का इल्जाम है। अपने खिलाफ आरोप तय होने के दौरान इन सभी को कोर्ट में खुद मौजूद रहना होगा। हालांकि खबर है कि सलमान शनिवार को कोर्ट में मौजूद नहीं रहेंगे। वह इन दिनों अमेरिका में अपनी मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए गए हुए हैं, ऐसे में उनके वकील कोर्ट में पेशी से छूट के लिए मेडिकल सटिर्फिकेट दाखिल कर सकते हैं।

इस बीच तब्बू, सोनाली बेंदे, सतीश शाह और नीलम के शुक्रवार को जोधपुर पहुंचने की खबर है। गौरतलब है कि सलमान पर वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के सेक्शन 51 के तहत आरोप लगे हैं, जबकि अन्य के खिलाफ सेक्शन 52 और आईपीसी की धारा 149 के तहत आरोप हैं। इस मामले की पिछली सुनवाई फरवरी में हुई थी। तब भी सलमान शूटिंग में बिजी होने के कारण कोर्ट नहीं पहुंचे थे। तभी केस की अगली तारीख 23 मार्च तय की गई थी।

Thursday 21 March 2013

दबाव के आगे झुका इटली, नौसैनिकों को भेजेगा भारत


भारत के कड़े दबाव के आगे आखिरकार इटली को अपने नौसैनिकों के मामले में झुकना पड़ा है। इटली सरकार ने भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी दोनों नौसैनिकों को फिर भारत भेजने का फैसला किया है, जिसके बाद उन पर भारत में ही मुकदमा चलेगा।

नौसैनिक शुक्रवार को भारत पहुंच जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वोट डालने इटली गए दोनों नौसैनिकों को लौटने के लिए 22 मार्च तक का ही वक्त दिया था।

मालूम हो कि इटली के नौसैनिकों को भेजने से इंकार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इतालवी राजदूत डेनियल मेनसिनी के भारत छोड़ने पर रोक लगा दी थी। इस मुद्दे को लेकर भारत और इटली के बीच तनाव काफी बढ़ गया था।

बहरहाल, मामला बिगड़ता देख अपने रुख में बदलाव करते हुए बृहस्पतिवार को इटली सरकार ने कहा कि भारत ने नौसैनिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने का भरोसा दिलाया है, जिसके बाद इन नौसैनिकों मैसीमिलियानो लातोरे और साल्वातोर गिरोने को वापस भेजने का फैसला किया गया है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को ही कहा था कि इतालवी नौसैनिकों को भारत लाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी। इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास तोड़ने पर इटली के राजदूत को तगड़ी फटकार लगाई थी।

नौसैनिकों के लौटने का वादा कर पलटने वाले मेनसिनी को शीर्ष अदालत ने यह भी बता दिया था कि उन्हें इस मामले में कोई राजनयिक कवच हासिल नहीं है।

गौरतलब है कि इटली के पोत एनरिक लेक्सी पर सवार दो नौसैनिकों ने गत वर्ष 15 फरवरी को केरल के तट के पास दो भारतीय मछुआरों को गोली मार दी थी।

क्या था मामला
मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी नौसैनिकों को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वोट डालने के लिए इटली जाने की इजाजत दी थी। लेकिन 11 मार्च को इटली ने भारत को बताया कि अब नौसैनिक नहीं लौटेंगे।

इससे नाराज सुप्रीम कोर्ट ने इटली के राजदूत के देश छोड़ने पर रोक लगा दी थी, जबकि केंद्र सरकार ने भी इटली के साथ राजनयिक संबंधों में कटौती का फैसला किया था। इसके चलते इटली में नवनियुक्त राजदूत की रोम रवानगी टाल दी गई थी।

Wednesday 20 March 2013

क्या फिर जेल जाएंगे संजय दत्त? आज आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला


नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट आज 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में फैसला देगी। इन विस्फोटों में 257 लोग मारे गए थे। करीब 713 लोग घायल हुए थे। टाडा कोर्ट ने इस मामले में 100 लोगों को दोषी करार दिया था। इनमें से 12 को मौत और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। अधिकतर लोगों ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।

वहीं, सीबीआई ने 57 लोगों की सजा बढ़ाने का आग्रह किया है। सुप्रीम कोर्ट संजय दत्त की अपील पर भी फैसला देगी। उनको अवैध हथियार रखने का दोषी करार दिया गया था। उन्हें इसके लिए छह साल जेल की सजा सुनाई गई थी।बॉलीवुड स्टार संजय दत्त को टाडा कोर्ट ने नवंबर 2006 में 9mm पिस्टल और एक AK 56 राइफल को अवैध रुप से रखने का दोषी ठहराया था. हालांकि अदालत ने संजय को आपराधिक साजिश रचने के आरोपों से बरी कर दिया था. 
सुप्रीम कोर्ट, टाडा कोर्ट कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले 100 से अधिक लोगों की अपील पर ये फैसला सुनाने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई नवंबर 2011 में शुरु किया था. शीर्ष अदालत ने इस मामले में अगस्त 2012 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गौरतलब है कि 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट में 257 लोगों की मौत हो गई थी और 713 लोग घायल हुए थे. धमाकों से उस समय करीब 27 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था.

फैसला सुनाने में लग सकते हैं हफ़्तों :

इस मामले के 123 अभियुक्तों में से 94 जमानत पर हैं जिनमें संजय दत्त भी शामिल हैं. 29 अभियुक्त जेल में हैं. इसके अलावा 11 अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई है. इन सब पर फ़ैसला सुनाने में हफ़्तों का वक़्त लग सकता हैं क्योंकि प्रत्येक अभियुक्त की इस पूरे मामले में भूमिका तय करनी होगी और फिर सज़ा सुनाई जाएगी.

मुख्य अभियुक्त आज तक नहीं हुआ गिरफ्तार :
मुंबई बम धमाके से जुड़े तीन अभियुक्त अबू सलेम, रियाज़ सिद्दीकी और मोहम्मद दौसा की सुनवाई को अलग कर दिया  गया है क्योंकि इनकी गिरफ़्तारी बहुत बाद में हुई थी. समाजवादी पार्टी के सांसद अबू आज़मी और अमज़द मेहर बख्श को जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया है वहीं एक अन्य अभियुक्त जमानत पर छूटने के बाद से फ़रार है.

इस पूरी घटना को कथित रुप से अंजाम देने वालों में शामिल दाऊद इब्राहिम, अनीश इब्राहिम और टाइगर मेमन कभी पकड़े ही नहीं जा सके. इसके अलावा मामले के 29 अभियुक्त अभी भी फ़रार बताए जाते हैं. आरोपपत्र के अनुसार सिलसिलेवार धमाकों के अलावा 12 मार्च को मुंबई के हिंदू बहुल इलाक़ों में हथगोले भी फेंके गए थे जिसके बाद हुए दंगों में कई और जानें गईं थीं.

इस मामले के मुख्य आरोपी की इंटरपोल को भी है तलाश :

मुख्य अभियुक्तों में शामिल दाऊद, अमरीका द्वारा जारी आतंकवादियों की सूची में है और इंटरपोल को भी उसकी तलाश है. बॉलीवुड सहित इस धमाके में मारे गए लोगों के परिवारों को आज होने वाले इस फ़ैसले का बेसब्री से इंतज़ार है.

Tuesday 19 March 2013

डीएमके ने राष्ट्रपति को सौंपी समर्थन वापसी की चिट्ठी


श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर यूपीए के घटक दल द्रमुक ने मंगलवार को देर रात राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंप दी। दिन में पार्टी प्रमुख करुणानिधि ने इसकी घोषणा की और देर रात पार्टी नेताओं ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर उन्हें इस संबंध में चिट्ठी सौंपी।

डीएमके नेता टीआर बालू ने कहा कि बुधवार को सुबह 11 बजे उनकी पार्टी के मंत्री पीएम मनमोहन सिंह से मिल कर अपने इस्तीफे सौंप देंगे। यूपीए सरकार में द्रमुक के एक कैबिनेट समेत पांच मंत्री हैं।

डीएमके से नौ साल पुराना नाता टूटने के बाद यूपीए सरकार ‘नंबर गेम’ के सियासी संकट में घिर गई है। हालांकि हमेशा की तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सरकार की संकटमोचक बनीं और उन्होंने सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखने की बात कही।

इसके बावजूद सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने रात को यह कह कर कांग्रेस को चौंका दिया कि उनकी पार्टी का संसदीय बोर्ड बैठक कर हालत पर विचार करेगा।

करुणानिधि के दांव से हिली सरकार ने दावा किया है कि यूपीए को बहुमत हासिल है।

केंद्र सरकार से द्रमुक का हटाना इसलिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि यूपीए में कांग्रेस के बाद द्रमुक के लोकसभा में सबसे ज्यादा 18 सांसद हैं।

द्रमुक के ऐलान के बाद यूपीए के पास अब 233 सांसद हैं, जबकि सपा, बसपा, राजद और जेडीएस के 50 सांसदों का बाहर से समर्थन मिल रहा है।

इस तरह सरकार के पास द्रमुक के अलावा बहुमत के लिए जरूरी 271 सांसदों की संख्या से कुछ अधिक सदस्य (233+50=283) हैं। सत्ताबल के लिए जरूरी आंकड़ों बावजूद द्रमुक के अलग होने से सरकार की राजनीतिक साख पर गहरे सवाल तो खड़ा हो ही गए हैं।

इससे पहले करुणानिधि ने चेन्नई में अपने मंत्रियों को हटाने का ऐलान करते हुए यूपीए सरकार पर आरोप लगाया कि उसने श्रीलंका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में पेश होने वाले प्रस्ताव को मजबूत करने के लिए द्रमुक के सुझाए संशोधनों पर विचार तक नहीं किया।

उन्होंने कहा कि ऐसी सरकार में बने रहने का क्या मतलब जिसमें तमिल ईलम के लोगों को कोई फायदा नहीं मिले।

हालांकि करुणानिधि ने यूपीए में वापसी का रास्ता यह कहते हुए खुला रखा कि अगर सरकार 21 मार्च से पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश होने वाले अमेरिका समर्थित प्रस्ताव में उनके सुझाए दो संशोधनों को शामिल करने के प्रस्ताव को पारित करती है तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं।

द्रमुक के फैसले से मचे हड़कंप के बावजूद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार तमिल मुद्दे पर चर्चा करने के लिए तैयार है। उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा।

सूत्रों के अनुसार सरकार ने द्रमुक को मनाने के लिए श्रीलंका में तमिलों की स्थिति पर प्रस्ताव के मसौदे पर काम करना शुरू कर दिया है।

यूपीए के रणनीतिकार इसके लिए विपक्ष को भी मनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं बैक चैनल डिप्लोमेसी के जरिए श्रीलंका पर अमेरिकी प्रस्ताव में मध्यमार्गी संशोधन की राह तलाशी जा रही है।

Monday 18 March 2013

उत्तर प्रदेश्‍ा में हर साल होंगी 41 हजार भर्तियां


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुलिस फोर्स की कमी को दूर करने के लिए हर साल 41 हजार भर्तियां करने के निर्देश द‌िए हैं।

इनमें 40 हजार से अधिक‌ सिपाही और लगभग डेढ़ हजार उपनिरीक्षकों की भर्ती होगी। यह प्रक्रिया चार सालों तक चलेगी।

प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर उठ रहे सवालों के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को गृह विभाग के अधिकारियों व पुलिस के आला अफसरों के साथ समीक्षा बैठक की।

बैठक में मुख्यमंत्री ने पुलिस फोर्स की कमी के बारे में जानकारी ली और चार सालों में सिलसिलेवार इसे दूर करने का भरोसा दिया।

अफसरों ने बताया कि मौजूदा समय में इंस्पेक्टर के 73 फीसदी, दारोगा के 57 फीसदी, हेड कांस्टेबल के 82 फीसदी और कांस्टेबल के 54 फीसदी पद खाली हैं।

चार सालों तक हर साल सिपाहियों के 40,459 पद और इस समय तक सेवानिवृत्त होने वाले सिपाहियों की संख्या को मिलाकर भर्ती की जानी है। चूंकि दारोगा के कुल 10,251 पद रिक्त हैं और इनमें 50 फीसदी पर नई भर्ती होनी है।

लिहाजा चार साल तक हर साल दरोगा के 1,518 पदों पर और उस समय तक सेवा निवृत्त होने वाले दारोगाओं के पदों पर भर्ती की जाएगी।

हेड कांस्टेबलों के पदों पर भी इन चार वर्षों के दौरान भर्ती की जाएगी। बैठक में बताया गया कि पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अधिकारियों को कहा गया है कि वे चार वर्षों के दौरान इस कमी को दूर करने की योजना तैयार कर लें।

कार्यशैली पर उठाए सवाल

बैठक में अखिलेश ने पुलिस विभाग को अपनी कार्यशैली सुधारने की सख्त हिदायत दी। सूचना मिलने पर भी अफसरों के मौके पर देर से पहुंचने को मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया।

उन्होंने अफसरों को चेताया कि सूचना मिलते ही तुरंत हरकत में आएं और घटनास्थल पर पहुंचें। साथ ही चौकियों और थानों में तैनात ऐसे पुलिसकर्मियों पर नजर रखने और कार्रवाई करने को भी कहा जिनकी छवि खराब है।

बयानबाजी पर जताई नाराजगी

आला अफसरों की मीडिया में बयानबाजी से हुई किरकिरी पर भी सीएम ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि किसी भी घटना के बारे में मीडिया को तथ्यात्मक जानकारी दी जाए। अफवाह फैलाने वालों के अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

संसाधन मुहैया कराए जाएंगे

मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि पुलिस विभाग को जरूरत के मुताबिक सभी संसाधन मुहैया कराए जाएंगे। वाहनों, सीसीटीवी, आधुनिक कंट्रोल रूम, फोरेंसिक लैब, नॉन लीथल वीपन की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।

Sunday 17 March 2013

मुसलमानों का हित पहले, सरकार बाद में: मुलायम


समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने रविवार को कहा कि मुसलमानों का हित पहले है और सरकार बाद में। उन्होंने प्रदेश में आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद बेगुनाह मुसलमानों को जल्द रिहा करने की घोषणा की।

लखनऊ में जमीयत उलमा हिंद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों को अपना सच्चा हमदर्द बताया। उन्होंने कहा कि सरकार बनाने में मुसलमानों ने जो सहयोग दिया, जिस तरह उन पर भरोसा जताया, उसे सपा की सरकार कभी भुला नहीं सकती।

प्रतापगढ़ में क्षेत्राधिकारी जिया उल हक की हत्या, प्रदेश में पिछले वर्ष हुए दंगों और जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी के समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद मुलायम के इस बयान को अब तक हुए राजनीतिक नुकसान की भरपाई करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

मुलायम सिंह यादव ने कहा, ' संसद हो, सड़क हो अथवा सरकार, सपा हमेशा अल्पसंख्यकों के हित की लड़ाई लड़ती रही है और आगे भी लड़ती रहेगी।'

मुलायम ने कहा कि मुसलमानों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था लेकिन उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री इसलिए बनवाया ताकि वह दिल्ली में रहकर अल्पसंख्यकों की आवाज उठा सकें।

हाल ही में मौलाना अहमद बुखारी द्वारा सपा सरकार की आलोचना किए जाने पर उन्होंने बुखारी का नाम लिए बगैर कहा कि मुसलमानों को प्रदेश सरकार की नीति व नीयत दोनों को देखना चाहिए।

प्रदेश सरकार में 11 मुसलमान मंत्री

मुलायम ने कहा कि प्रदेश सरकार में 11 मंत्री मुसलमान हैं। कई विधायक भी मुसलमान हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्य सचिव भी मुसलमान हैं। ये सभी लोग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, 'प्रदेश की जेलो में बंद निर्दोष मुसलमानों की रिहाई के मामले में सरकार अच्छे नतीजे निकलाने की कोशिश कर रही है। यह भी कोशिश हो रही है कि जहां अदालतों का सहारा लेने की जरूरत हो, वहां अदालतों की मदद ली जाए। इसके लिए डीजीपी व मुख्य सचिव विचार-विमर्श कर रहे हैं।'

राजा भैया की गिरफ्तारी की मांग

जमीयत के कार्यक्रम में राजा भैया की गिरफ्तारी की मांग में नारे भी लगे। कार्यक्रम में लोगों ने मुलायम के सामने क्षेत्राधिकारी जिला उल हक की हत्या के आरोपी राजा भैया की गिरफ्तारी की मांग की।

मुलायम ने कहा कि यह मामला इस मंच से उठाना ठीक नहीं हैं। यहां मजलूमों ओर बेकसूरों को इंसाफ मिलने की आवाज उठ रही है। एक मंच से दो आवाज उठाना ठीक नहीं है। सरकार पूरे मामले को गंभीरता से ले रही है।

दंगा नियंत्रण कानून और आरक्षण

कार्यक्रम में जमीयत उलमा के संरक्षक असजद मदनी ने मुलायम को दंगा विरोधी कानून और मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण का वादा भी याद दिलाया।

उन्होंने कहा कि संविधान में अब तक 117 संशोधन किए जा चुके हैं। इसलिए एक और संशोधन होना बहुत मुश्किल काम नहीं है।

Sunday 10 March 2013

स्त्री विमर्श: अनुभव के शब्द


अजय पाण्डेय
यह कितना विरोधाभाष  है कि जब वैश्विक विचार-विमर्श में नारी-सशक्तिकरण की बात हो रही है, उनकी सहभागिता को अहम बताया जा रहा है तब उसी वैश्विक परिदृश्य में लैंगिक असमानता, जाति, धर्म आदि को प्रासंगिक बना दिया जाता है। सात जिन्दगियों में लिपटा नारी-विमर्श ‘संगतिन-यात्रा’ वैश्विक नारी-विमर्श के इसी विरोधाभाष पर सवाल खड़ी करती है। उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सीतापुर की पृष्ठभूमि पर रची-बसी यह पुस्तक उन लेखिकाओं के ऐसे अनुभवों की प्रस्तुति है जिन्होंने समाज, परिवार और रिश्तों के दायरे में रहकर प्राप्त किया है। अनुपम लता, रामशीला, रेशमा अंसारी, विभा बाजपेयी, शशि वैश्य, शशिबाला, सुरबाला, ऋचा  सिंह और ऋचा नागर ये वो लेखिकाएं हैं जो साहित्य सृजन की परम्परा और शैली से परे एक ऐसी विषय-वस्तु प्रस्तुत करती हैं जहां बहस और विमर्श के लिए सिर्फ और सिर्फ समाज की स्त्रियों  के प्रति सोच ही केन्द्र में रह जाता है। दरअसल यह पुस्तक सात लेखिकाओं के माध्यम से सात अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व  करती हैं जिसमें अलग-अलग पृष्ठभूमि, जाति, धर्म , उपेक्षित और दलित महिलाएं शामिल हैं। ये वो महिलाएं हैं जो अपना और अपने परिवार के जीवन को सहारा तथा बेहतर बनाने के लिए विषम परिस्थितियों में नौकरी करती हैं लेकिन धीरे धीरे  ऐसे हालात उत्पन्न होने लगते हैं जिससे उनको वो नौकरी संघर्ष का प्रतिरूप लगने लगता है। इन परिस्थितियों में उनके मन में उद्वेलन की नमी पाकर सवालों के कुछ बीज प्रस्फुटित  होते हैं लेकिन उनकी इस उत्कंठा का कहीं जवाब नहीं मिलता। यही उत्कंठा उनके मन में एक ऐसी योजना बनाती है जो उन्हें खामोश जिन्दगी से बाहर निकाल सके। इन महिलाओं ने एकमुखी रूप अख्तियार नहीं किया, बल्कि कोरस, जहां सबके जीवन के तार को झंकृत किया जा सके। नारी-विमर्श को लेकर जब चर्चा होती है तो अक्सर देखा जाता है कि किसी समुदाय विशेष की बात होती है लेकिन इस पुस्तक में इतना सटीक संतुलन है कि यहां समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व  किया गया है और उनकी दैनंदिन अनुभूतियों को शब्द दिया गया है। ये सातों पात्र दलित नहीं हैं, उनमें ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और रैदास भी हैं, उनकी आर्थिक स्थिति भी एक जैसी नहीं है, उनके पति, मायके और ससुराल वाले भी अलग-अलग हैं फिर  ऐसा क्या है जो उन्हें एकसाथ आने पर विवश कर रही है। शायद उनका एहसास। ये उनका एहसास ही तो है जो उनके मन में उबरने की चाहत पैदा करता है, उनकी भावनाओं को शब्द दे रहा है, उनकी सोच को मुखरित कर रहा है। ‘संगतिन’ समूह की ये सदस्यायें जिन्हें शायद ही कभी इल्म हो कि ये कभी लेखिकाएं बनेंगी लेकिन वर्तमान में जो संवेदनात्मक लेख प्रस्तुत किया है उससे तो स्पष्ट है कि ज्ञान के हर पैमाने पर राजनीति होती है। तभी तो जब स्त्री -विमर्श पर चर्चा होती है तो देखा जाता है कि उसमें कौन से लोग उस विमर्श में अपनी बात रखने के काबिल समझे जाते हैं, कौन उस पर हिन्दी-अंग्रेजी में रिपोर्ट तैयार करता है और किसे सिर्फ नुमाइश के लिए बुलाया जाता है। इस समूह की महिलाओं ने असमानता का अनुभव किया था, इन्हें गहराई से महसूस किया था और यह पुस्तक उसी  एहसासों, व्यक्तिगत तकलीफों का मुखर प्रतिबिम्ब है। हालांकि इस पुस्तक के विकास के क्रम में एक सूक्ष्म प्रश्न को भी उठाया गया है कि इस पुस्तक में स्त्रियों  के जीवन के स्याह पक्ष को ही क्यों व्यक्त किया गया है? उन्हें ससुराल की वही बातें क्यों याद हैं जब उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी काम करना पड़ता था, सास-ननद के ताने सुनने पड़ते थे और पति को अपनी खुशी की तिलांजलि देकर खुश रखना होता था। ऐसा तो नहीं कि ससुराल में खुशियों के पल आए ही नहीं, अगर आए तो उनकी यादें शेष क्यों नहीं हैं? या पिफर ऐसा हुआ कि सपनों के बिखर जाने की पीड़ा ने खुशियों के उस पल को धूमिल  कर दिया है। 

मानो उनके लम्हे फिसल गए। उनके जीवन में ऐसे कई पल आए जब शादी को इस रूप में व्यक्त किया गया जैसे ‘पूरे अस्तित्व पर किसी और का कब्जा’। इस पुस्तक की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें विभिन्न खंडों के माध्यम से उनकी हर परिस्थिति का पृथक अवलोकन किया गया है। किसी की बेटी से लेकर किसी की मां बनने तक के सपफर को बड़ी मार्मिकता से यथावत रख देना ही इसका सबल पक्ष है। इस बात इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी समाज में ऐसी जातिगत और पारिवारिक बंधन  है जहां औरत की हदें चहारदीवारी के भीतर तय कर दी जाती हैं। यह पुस्तक संदेश है उन लोगों के लिए जो आज भी विकल्पहीनता को ही विकल्प मानते हैं और पुरुष वर्चस्व की वकालत करते हैं। दरअसल ‘संगतिन-यात्रा’ सामाजिक सरोकार और दायित्व का एक मार्ग प्रशस्त करती है जिससे दूर तक दृष्टि जाती है। इस पुस्तक में न तो कोई भाषागत जटिलता है और न ही शैली तथा परम्परा की छाप। यह तो अवधरणा की नई शैली है जो सामाजिक रूढ़ियों के विरूद्ध  एक नया मोर्चा तैयार करती है।

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