Sunday 24 June 2012

जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठे पायलट

नई दिल्ली। इंडियन पायलट गिल्ड [आइपीजी] के 10 पायलटों ने जंतर-मंतर पर रविवार से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी। पिछले 47 दिन से जारी हड़ताल को और असरदार बनाने की मंशा से एयर इंडिया के पायलटों ने यह रणनीति तैयार की है। पायलटों ने एयर इंडिया प्रबंधन द्वारा भेदभाव और शोषण का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ अपने नए कदम का एलान किया है। आइपीजी विलय से पूर्व एयर इंडिया के पायलटों का संगठन है। आइपीजी के सदस्य रोहित कपाही ने कहा कि हम चाहते है कि हड़ताल जल्द से जल्द समाप्त हो, लेकिन हम काम पर तब तक नहीं लौटेगे, जब तक हमारे बर्खास्त 101 साथियों को बहाल नहीं किया जाता। एयर इंडिया प्रबंधन ने आठ मई से हड़ताल शुरू करने वाले 101 पायलटों को बर्खास्त कर दिया था। ये पायलट एयर इंडिया में विलय की गई विमानन कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलटों को बोइंग 787 ड्रीमलाइनर का प्रशिक्षण दिए जाने के विरोध में हड़ताल पर है। अनशन करने वाले पायलटों का नेतृत्व कैप्टन आदित्य सिंह ढिल्लन कर रहे हैं। कपाही ने कहा कि यह बात सच नहीं है कि पायलटों का वेतन बेहद ज्यादा होता है। भूख हड़ताल के दौरान हम अपनी पे-स्लिप भी दिखाएंगे ताकि दुनिया को पता चल सके कि हमें उद्योग के मानक के मुताबिक ही वेतन दिया जा रहा है, जो कि बहुत ज्यादा नहीं है। केंद्रीय विमानन मंत्री अजित सिंह कई बार पायलटों से काम पर लौटने की अपील कर चुके हैं, जबकि एयर इंडिया ने नए पायलटों की बहाली भी शुरू कर दी है। इस सरकारी एविएशन कंपनी को हड़ताल से अब तक लगभग 520 करोड़ रुपये का चूना लग चुका है। कंपनी अपनी 45 में से अभी सिर्फ 38 सेवाओं का ही संचालन कर पा रही है।

प्रसाद में मादक पदार्थ

मदुरै. विवादास्पद स्वामी नित्यानंद के खिलाफ पवित्र जल (प्रसाद) में मादक पदार्थ (ड्रग्स) मिलाने का केस दर्ज किया गया है। उनपर पहले से ही कई केस चल रहे हैं। पुलिस ने शनिवार को मद्रास हाईकोर्ट को केस दर्ज करने की जानकारी दी है। मामले में नित्यानंद के अलावा दो और लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। कोर्ट ने एम सोलाई कन्नन की शिकायत पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। पुलिस ने मद्रास उच्च न्यायालय को जानकारी दी है कि उन्होंने नित्यानंद और दो दूसरे लोगों के खिलाफ श्रद्धालुओं को पवित्र पानी या चरणामृत के नाम पर ड्रग्स मिला हुआ पानी देने एक मामला दर्ज किया है। नित्यानंद के खिलाफ एम सोलुईकन्नन की शिकायत पर जब मद्रास हाईकोर्ट के सामने ये मामला सुनवाई के लिए आया तो सरकारी वकील ने अदालत को जानकारी दी कि पुलिस ने कई धाराओं के तहत नित्यानंद के खिलाफ केस दाखिल कर लिया है। नित्यानंद ने बैंगलोर आश्रम को छोड़कर एक बेहद पुरानी धार्मिक संस्था मदुरई अधीनम में अपना ठिकाना बनाया है। वह आश्रम में अपने भक्तों को जो पवित्र तरल प्रसाद देते थे उसमे ड्रग्स की मिलावट होती थी। उन्होंने अपने कई भक्तों की धार्मिक भावनाओं और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया है। गौरतलब है कि स्वामी को रेप, अश्लीलता और मार-पीट के आरोप में कुछ दिन पहले ही गिरफ्तार किया गया था। बाद में उनको दो मामलों में जमानत मिली थी। उनके आश्रम में तलाशी के दौरान कई चौंकाने वाली चीजें मिली थीं। दुनिया भर में योग का प्रचार करने वाले बाबा के निजी कमरे से ट्रेडमील और डंबल्‍स मिले थे। जांच के दौरान उनके कमरे में डबल बेड, एयर कंडीशन, एलसीडी टीवी और लॉकर पाया गया था। लाकर से ज्वेलरी और निजी दस्तावेज बरामद हुआ था। इसे जांच के लिए सीज कर दिया गया था। बाबा ने इस जांच के खिलाफ करोड़ों के हर्जाने का केस दायर किया था।

Thursday 21 June 2012

चिकित्सा का आखिरी पड़ाव है दिल्लीः वालिया

Dr. A K Walia
कहते हैं स्वस्थ समाज से ही स्वस्थ भारत का निर्माण होता है और एक स्वस्थ समाज बेहतर चिकित्सा व्यवस्था से ही सम्भव है। पिछले कुछ सालों में जहां पोलियो न सिर्फ दिल्ली के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ था लेकिन एक संयुक्त प्रयास से दिल्ली समेत संपूर्ण भारत पोलियोमुक्त हो गया है। इसके अलावा राजधनी क्षेत्रा होने के नाते दिल्ली की चिकित्सा व्यवस्था हमेशा चर्चा में रहती है चाहे वो बेहतर सुविधा   के लिए हो या फिर  सफाई को लेकर हो, सभी परिस्थितियों में बात निकलती है तो दूर तक जाती है। इन्हीं मुद्दों पर दिल्ली प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री  डॉ अशोक वालिया से हमारे संवाददाता अजय पाण्डेय ने खास बातचीत की-

पिछले दो सालों में पोलियो की एक भी शिकायत नहीं आई है, स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए कितनी राहत की बात है?
राहत तो है क्योंकि यह ऐसी बीमारी है जिससे बच्चे कृपण हो जाते हैं। यह काफी सुकून भरा है कि न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरा भारत पोलियो मुक्त हो गया है। बावजूद इसके हम पोलियो अभियान को जारी रखेंगे जिससे कि इसकी वापसी न हो सके। 

पोलिया मुक्त दिल्ली के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी?
यह एक संयुक्त प्रयास था और इसका परिणाम काफी अच्छा रहा। जहां तक मेहनत की बात है तो इस अभियान पर काम तो हुआ है। पोलियो वायरस के समूल नाश के लिए लगभग 7900 बूथ बनाये गए हैं जो औसतन एक विधानसाभा  के हिसाब से 50 से 100 हैं। इसके अलावा पोलियो ड्रॉप्स पिलाने के लिए हर घर तक जाने की भी व्यवस्था कराई गई है। 

दिल्ली के अस्पतालों में सफाई को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं क्या कहेंगे?
अस्पतालों में साफ-सफाई को लेकर विशेष ध्यान दिया जाता है कोशिश की जाती है कि अस्पताल परिसर में किसी भी प्रकार की कोई गंदगी न हो। अस्पतालों से निकलने वाले तज्य पदार्थों को उचित तरीके से निपटाया जाता है। प्लास्टिक युक्त अपशिष्ट को पहले काटा जाता है फिर  उसे अपघटित कर उपचार किया जाता है। इसके अलावा छोटे  अस्पतालो से निकलने वाले अपशिष्ट को बड़े अस्पतालों में भेजा जाता है और फिर  वहां इसका निपटान होता है। 

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अक्सर कहती रहती हैं कि दिल्ली के अस्पतालों में बाहरी लोगों का बोझ है इसलिए दिल्लीवासियों को बेहतर सुविधयें नहीं मिल पातीं, क्या आप भी ऐसा मानते हैं?
दरअसल दिल्ली के अस्पतालों में 40 फीसदी लोग बाहर से आते हैं, ऐसे में दबाव तो रहता ही है। लेकिन राजधनी क्षेत्र होने के नाते हमारा यह फर्ज भी बनता है कि हम बाहर से आने वाले लोगों को बेहतर चिकित्सा मुहैया करायें। और जहां तक दिल्लीवासियों की बात है तो उनके लिए भी सदैव तत्पर हैं और सबको संतुलन में रखकर चिकित्सा सुविधा  दी जाती है। 

दिल्ली की जो चिकित्सा व्यवस्था है उसे किस आधार  पर अन्य राज्यों से बेहतर मानते हैं?
दिल्ली की चिकित्सा व्यवस्था बेहतर है। यहां ऐसी कई सुविधाएं  हैं जो चाहे बाहर से आने वाले लोग हों या फिर  दिल्लीवासी सबको एकसमान उपलब्ध् कराई जाती है। कई सुपर स्पेशलिटी सुविधा  है जहां किडनी ट्रांसप्लांट, लीवर ट्रांसप्लांट, न्यूरोसर्जरी आदि की उच्च स्तरीय व्यवस्था है। दरअसल दिल्ली बाहरी लोगों से लेकर यहां तक के लोगों के लिए एक आखिरी पड़ाव है। 

एक डॉक्टर होने के नाते क्या आप ऐसा मानते हैं कि वर्तमान में डॉक्टर या नर्स अपने काम को लेकर तनाव में रहते हैं और अगर ऐसा है तो इसके लिए सरकार के पास इसे दूर करने की क्या कोई योजना है?
देखिए! चिकित्सा कार्य एक मानवीय काम है तो इसमें डॉक्टरों और नर्सों के  तनाव में आना स्वाभाविक सी बात है। उनके उपर बेहतर काम करने का दबाव रहता है। कई बार ऐसे परिवार आ जाते हैं जिसमें मरीज की मौत हो जाने पर उसका परिवार लड़ने-झगड़ने पर उतारू हो जाता है। ऐसे में इनके तनाव कम हो सके इसके लिए सरकार अतिरिक्त डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल चिकित्सकों को नियुक्त किया जा रहा है। 



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Monday 18 June 2012

मोतीलाल वोरा के साथ अजय पाण्डेय की खास बातचीत

महंगाई, भ्रष्टाचार एवं रुपये की गिरावट जैसे मुद्दों पर सरकार भले ही अपने तर्क गढ़ रही है लेकिन कांग्रेस पार्टी वर्तमान हालात की गंभीरता को समझती है। यह सच है कि इन मुद्दों ने कार्यकर्ताओं को पशोपेश में डाला है। यही कारण रहा कि पेट्रोल की कीमतों ने बेतहासा वृद्धि  को लेकर कांग्रेस के ही कई दिग्गज नाराज थे। 
इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा से हमारे संवाददाता अजय पाण्डेय ने बातचीत की-

 महंगाई, भ्रष्टाचार, गठबंध्न की मजबूरी आदि तमाम ऐसी समस्यायें हैं जो पार्टी को रोज एक चुनौती पेश कर रही हैं इसे आप कैसे देख रहे हैं?
 देखिए, जब आप सरकार में रहते हैं तो ऐसी चुनौतियां आती रहती हैं, लेकिन ये सरकार पर निर्भर करता है कि इन चुनौतियों से कैसे निपटती है। जहां तक संप्रग सरकार की बात है तो सरकार यह मानती है कि महंगाई है, बाजारों में सबकुछ उपलब्ध् हैं लेकिन उंचे दामों पर। लेकिन यह भी सच है कि सरकार पूरी सतर्कता और ईमानदारी से महंगाई को रोकने की दिशा में कार्रवाई कर रही है। इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए गए हैं कि इस दिशा में सकरात्मक कार्य करें। इनमें से कुछ राज्यों ने जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई भी की है लेकिन महंगाई पूरी तरह तब तक काबू में नहीं आएगी जब सारे राज्य मिलकर काम नहीं करते। जब बात भ्रष्टाचार की आती है तो सरकार इन मामलों के बाबत सभी मुद्दों की जांच कर रही है और जो भी इस प्रकरण में संलिप्त पाया गया है उस पर कार्रवाई भी हुई है और आगे इस तरह कोई बात होती है तो सरकार उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र और सक्षम है। 

- अभी हाल ही स्टैण्डर्ड एंड पुअर्स की एक रिपोर्ट आई है जिसमें भारत की आर्थिक गिरावट के लिए केन्द्र सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया गया है इस सन्दर्भ में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
 अभी वैश्विक समाज में जो दौर चल रहा है उससे सब लोग वाकिफ हैं लेकिन यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि इन सबके बावजूद भारत मजबूती से टिका हुआ है और लगातार आर्थिक गिरावटों से उबरने की कोशिश कर रहा है। सरकार खुद भी मान रही है कि अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए काफी कुछ करना है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का ही हिस्सा है और अगर वैश्विक समाज में मंदी जैसी कोई बात होती है तो भारत पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है। 

 पिछले कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि एक संगठन के रूप में कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है। उत्तर प्रदेश विधनसभा चुनाव इसके उदाहरण हैं, वहां राहुल गाँधी भी बेअसर हो गए, क्या कहेंगे।
 यह सही है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी लेकिन यह कहना कि संगठन के रूप में पार्टी कमजोर होती जा रही है सही नहीं है। जहां तक राहुल गाँधी  की बात है तो वे देश के युवा नेता हैं। उनके परिश्रम ने देश में एक वातावरण बनाया है, जिसके बाद कई परिवर्तन हुए हैं। उत्तर प्रदेश में बेशक कम सीटें मिली हैं लेकिन राहुल   गाँधी  का उत्तर प्रदेश का दौरा भविष्य में सकरात्मक परिणाम देंगे , ऐसी उम्मीद है। 

 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी  को कहां देखते है?
(हंसते हुए) आप साफ-साफ पूछ सकते हैं कि क्या पार्टी 2014 में राहुल गाँधी  को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करेगी? देखिए फिलहाल  तो मनमोहन सिंह ही देश के  प्रधानमंत्री  हैं और जहां तक राहुल  गाँधी  की बात है तो अभी वो संगठन के लिए बेहतर काम कर रहे हैं, कई राज्यों का वे दौरा कर चुके हैं अभी हाल ही में उन्होंने छत्तीसगढ़ और कर्नाटक का दौरा किया है जिससे वहां के पार्टी संगठन में काफी बदलाव आया है। कार्यकर्ताओं में जोश भी आया है और काफी सक्रियता से काम कर रहे हैं। 2014 के चुनाव में जो होगा वो सामने आएगा। 

 अभी हाल ही में आन्ध्र  प्रदेश उपचुनाव में कांग्रेस को 18 में से महज 2 सीट मिली है वो भी तब जब वहां कांग्रेस की सरकार है।
 हां, यह एक चौंकाने वाला परिणाम है। पार्टी हाईकमान इस संदर्भ में आंध्र  प्रदेश के पार्टी पदाधिकारियों  से बात करेगी और पार्टी की हार के कारणों पर चर्चा की जाएगी। जहां तक आंध्र  प्रदेश सरकार की बात है तो सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए काफी काम किया है बावजूद इसके जो परिणाम आये हैं उस पर आने वाले दिनों में मंथन की जाएगी। 

 प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने से पार्टी को कितनी राहत मिली है?
 प्रणव मुखर्जी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता हैं, उन्होंने एक लम्बे समय से पार्टी की सेवा की है। इसलिए राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी स्वाभाविक है। 

 ममता बनर्जी को कैसे मनायेंगे?
 प्रणव मुखर्जी के लिए ममता बनर्जी को छोड़कर सभी घटक दलों ने समर्थन दे दिया है। पार्टी ममता बनर्जी से भी बात कर रही है क्योंकि यह पूरे देश का मामला है। उम्मीद है ममता भी साथ आएंगी। 

 अगला वित्तमंत्री  कौन होगा?
प्रधानमंत्री  खुद एक बड़े अर्थशास्त्राी हैं और उन्होंने तो पहले ही साफ कर दिया है कि प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति की उम्मीदवारी तय होने के बाद वित्तमंत्री  का अतिरिक्त प्रभार  प्रधानमंत्री   के पास ही रहेगा।


अजय पाण्डेय
(संवाददाता )


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कांग्रेस ने कसी दिग्विजय पर नकेल, पार्टी की ओर से बयान देने पर लगी रोक

नई दिल्‍ली. आए दिन अपने बयानों से पार्टी को मुश्किलों में डालने वाले दिग्विजय सिंह पर कांग्रेस ने सख्‍ती बरतनी शुरू कर दी है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का कोई भी बयान अब पार्टी का बयान नहीं माना जाएगा। कांग्रेस के मीडिया सेल ने आज एक बयान जारी कर यह फरमान सुनाया। बयान में कहा गया है, दिग्विजय सिंह पार्टी की तरफ से बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं। दिग्विजय सिंह ने हाल में तृणमूल कांग्रेस चीफ और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर टिप्‍पणी की थी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी नहीं चाहती कि राष्‍ट्रपति चुनाव के मसले पर ममता से यूपीए की दूरी बढ़े। ममता की तरफ से यूपीए के उम्‍मीदवारों का नाम खारिज किए जाने के बाद दिग्विजय ने कहा था, यह पार्टी अध्‍यक्ष सोनिया गांधी और पीएम मनमोहन सिंह के लिए बेहद शर्मनाक है कि ममता बनर्जी ने न सिर्फ यूपीए के उम्‍मीदवारों के नाम खारिज कर दिए बल्कि समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर तीन और नाम उछाल दिए जिसमें एक पीएम का भी नाम शामिल था। यूपीए की अहम सहयोगी ममता बनर्जी वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने का भी विरोध करती आ रही हैं। दिग्विजय ने इस मसले पर एक टीवी शो के दौरान कहा था, हर बात की सीमा होती है, जहां तक कोई झुक सकता है। दिग्विजय से पूछा गया था कि ममता को यूपीए से बाहर जाने से रोकने के लिए कांग्रेस किस सीमा तक झुक सकती है। अपनी बात के साथ ही दिग्विजय ने यह साफ किया कि कांग्रेस अपनी ओर से ममता से ‘जाने के लिए’ नहीं कहेगी और न ही ऐसा कुछ करेगी कि ममता यूपीए से अलग हो जाएं। उन्होंने कहा, ममता को मनाने के हमने सारे प्रयास किए थे। एक सीमा तक कांग्रेस ने ममता के नखरे भी उठाए हैं, लेकिन एक सीमा के बाद कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दिग्विजय सिंह ने यहां तक कहा दिया था, ममता कई मामलों में अस्थिर हैं। वह ऐसी ही हैं। उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं। वह ममता हैं। वह आपकी सोच के विपरीत कुछ भी कर गुजर सकती हैं।

Sunday 17 June 2012

प्रणब दा ... सफल राजनीति से आदर्श चुनौतियों तक ||



    जब अधिकाधिक लोग राजनीति के बारे में यह कहते नहीं थकते है कि "राजनीति में विश्वास की जगह नहीं होती", उन सक्रिय लोगों को भावी महामहीम प्रणब मुखर्जी के धैर्य और विश्वास से सीख लेनी चाहिए. सीख लेने की जरूरत न सिर्फ कांग्रेस के लोगो को है, बल्कि इस घटनाक्रम से भाजपा के अति सक्रिय राजनेता एवं संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  नरेन्द्र मोदी को भी जरूरत है, क्योंकि धैर्य  और विश्वास न रखने का ही नतीजा है कि वह अपने मातृ- संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चरम नाराजगी और अपनी पार्टी भाजपा में भी नाराजगी के आखिरी मुहाने पर खड़े है. निश्चित रूप से धैर्य ममता बनर्जी को भी रखने की जरूरत है, जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत राजनीति की जल्दबाजी में अलग- थलग होने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और साथ ही साथ मुलायम सिंह यादव की अंगड़ाई को भी धैर्य रखने की जरूरत थी, जिसमे उन्होंने तुरुप का पत्ता बनने की कोशिश में शायद अपनी विश्वसनीयता को ही दाव पर लगा दिया.


   राजनीति की हर एक व्याख्या इतिहास से शुरू होती है. इससे पहले कि हम प्रणब मुखर्जी की राजनीति की सुलझी चालों की बात करें, हमें यह जान लेना होगा कि प्रणब आखिर राजनीति में इतने अहम् क्यों है, विशेष रूप से कांग्रेस जैसी पार्टी में जिसमे हमेशा से एक ही परिवार का राजनैतिक वर्चस्व रहा है, उसके लिए प्रणब मुखर्जी अपरिहार्य कैसे हो गए ? एक सर्वोत्कृष्ट राजनेता, अक्लमंद प्रशाशक, चलता फिरता शब्दकोष, इतिहासकार- लेखक एवं पिछले ८ वर्षों से कांग्रेस पार्टी की डूबती नाव के खेवनहार इत्यादि उपनामों से नवाजे गए श्री मुखर्जी का जन्म १९३५ को बीरभूम जिले के मिराती नमक गावं में हुआ था. पिता कामदा किंकर मुखर्जी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य एवं ख्यात स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके पिता पश्चिम बंगाल विधान परिषद् के करीब १४ साल तक सदस्य भी रहे. उनके पदचिन्हों पर चलते हुए प्रणब मुखर्जी ने अपना राजनैतिक जीवन १९६९ से राज्य सभा सदस्य के रूप में आरम्भ किया. १९७३ में उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री के तौर पर कार्य किया. उनका मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्यकाल १९८२ से १९८४ के बीच रहा जिसमे युरोमनी पत्रिका ने उन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया. इसके बाद श्री मुखर्जी ने कांग्रेसी सरकार में अनेक विभागों में मंत्री के रूप में कार्य किया. राजनीति में कांग्रेस पार्टी में श्री मुखर्जी की लोकप्रिय नेता की छवि सदा से बनी रही है. कांग्रेस पार्टी की आतंरिक राजनीति की बात करें तो, श्री मुखर्जी के हाशिये पर जाने की कहानी भी लगातार चर्चा में बनी रही. इंदिरा गाँधी के शाशनकाल के दौरान नंबर दो की पोजीशन हासिल करने वाले श्री मुखर्जी का राजनीतिक वनवास  श्रीमती इंदिरा गाँधी की आकस्मिक मृत्यु के बाद शुरू हुआ. अपनी सर्वविदित छवि के अनुरूप कांग्रेस पार्टी के परिवार-पूजक नेता श्री राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद की गद्दी सौपना चाहते थे और बाद में हुआ भी वही. श्री मुखर्जी वही पर मात खा बैठे और अपनी योग्यता और बुद्धिमता को उन्होंने राजनीति समझ लिया. कहा जाता है कि श्री मुखर्जी के उस समय के रवैये को नेहरु-गाँधी परिवार आज तक नहीं भुला पाया और श्री मुखर्जी लगातार अपनी अवहेलना झेलते भी रहे. श्री मुखर्जी के योग्य होने के बावजूद पहले राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने फिर उसके बाद पी.वी.नरसिम्हा राव और हद तो तब हो गयी जब गाँधी परिवार के वर्तमान नेतृत्व ने श्री मुखर्जी के कनिष्ठ रहे डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया और श्री मुखर्जी के मन में हर घाव गहरा होता गया. पर उन्होंने धैर्य और विश्वास का दामन लम्बे समय तक नहीं छोड़ा. यहाँ तक कि कई छोटे बड़े मंत्री डॉ. मुखर्जी को आँख भी दिखाते रहे, कई अहम् फैसलों में उनकी सलाह को ताक पर रखा गया पर उन्होंने विश्वास का दामन और अपनी योग्यता को निखारना जारी रखा, उन्हें अपनी अंतिम जंग जो जीतनी थी.
    
    वर्तमान राजनीति की बारीक़ समझ रखने वाले इस बात पर एक मत है कि कांग्रेस पार्टी पहले प्रणब मुखर्जी के नाम पर भी सिरे से असहमत थी. 
सोनिया गाँधी प्रणब के नाम पर लगातार नाक- भौं सिकोड़ती रही है. अब से नहीं बल्कि जबसे मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने है तब से, या शायद उससे पहले से ही, क्योंकि पहले कांग्रेस पार्टी के नाम पर सोनिया गाँधी ऐसा राष्ट्रपति चाहती थी जो २०१४ में कांग्रेस की भावी सम्भावना राहुल गाँधी को जरूरत पड़ने पर उबार सके, अपनी गरिमा के विपरीत जाकर भी, इसीलिए कुछ कमजोर नाम भी लगातार चर्चा में बने रहे. यदि कांग्रेस पार्टी की मंशा साफ़ होती तो प्रणब मुखर्जी के नाम की सार्वजानिक घोषणा कभी की हो चुकी होती और राष्ट्रपति चुनाव की इतनी छीछालेदर तो नहीं ही होती. भला हो ममता बनर्जी का जो उन्होंने कांग्रेस को तो कम से कम इस बात के लिए मजबूर किया कि वह अपने प्रत्याशियों के नाम तो बताये. इसी कड़ी में प्रणब का नाम कांग्रेस की तरफ से दावेदार के रूप में उभरा, पर उनके साथ और भी एक नाम उभरा जिससे यह साफ़ जाहिर हो गया कि कांग्रेस पार्टी अभी भी प्रणब का विकल्प खोज रही थी. सीधी बात कहें तो प्रणब मुखर्जी भी अपनी दावेदारी को लेकर बाहरी दलों की तरफ से ज्यादा आश्वस्त थे, परन्तु कांग्रेस की तरफ से बिलकुल भी नहीं. यहाँ तक कि उनके संबंधो की बदौलत भाजपा के कई नेता जैसे मेनका गाँधी, यशवंत सिन्हा इत्यादि सार्वजनिक रूप से उन्हें अपनी पसंद बता चुके थे, परन्तु प्रणब मुखर्जी अपनी धूर-विरोधी सोनिया गाँधी को कैसे भूल जाते, जिसने श्री मुखर्जी की राजनीतिक संभावनाओं पर गहरा आघात किया था. अब ले- देकर श्री मुखर्जी को राजनीति के आखिरी पड़ाव पर राष्ट्रपति पद की एक ही उम्मीद बची थी, और उसे वह किसी भी हाल में हासिल करने की मन ही मन ठान चुके थे. 

    इसी क्रम में श्री मुखर्जी ने अपने संबंधो का जाल बिछाया और राष्ट्रपति चुनाव के समय से काफी पहले इसकी चर्चा अलग-अलग सुरों से शुरू करा दी. इसमें श्री मुखर्जी खुद भी सधे शब्दों में राय व्यक्त करने से नहीं चुके और अपने को मीडिया, अन्य राजनैतिक मित्रों के माध्यम से चर्चा में बनाये रक्खा. श्री मुखर्जी सोनिया गाँधी की पिछली चालो से बेहद सावधान थे, जिसमे पिछले राष्ट्रपति चुनाव में श्रीमती गाँधी अपनी मर्जी का प्रत्याशी उठाकर कांग्रेसियों के सामने रख दिया और क्या मजाल कि कोई कांग्रेसी चूँ भी करता कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए वर्तमान राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटिल से भी योग्य उम्मीदवार हैं. श्रीमती सोनिया गाँधी इस बार भी वही दाव चलने की कोशिश में थी और शायद वह कोई छुपा हुआ उम्मीदवार लाती भी जो की महामहीम की कुर्सी की शोभा जरूर बढाता परन्तु सोनिया गाँधी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को येन-केन-प्रकारेण पूरा ही करता, भले उसकी गरिमा सुरक्षित रहती अथवा नहीं. प्रणब दा इस तथ्य से भली- भांति परिचित थे कि यदि सोनिया ने किसी गदहे को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित कर दिया तो कांग्रेस की समस्त राजनीति सिर्फ उसकी हाँ में हाँ ही मिलाती नजर आती, फिर उसके बाद प्रणब दा लाख सर पटकते, कुछ नहीं होता, बल्कि उनको बागी कह कर नटवर सिंह, जगन मोहन, हरीश रावत जैसी कार्रवाई का सामना करना पड़ता, और गाना पड़ता "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत" |

    पर बंगाली बाबु इस बार बेहद सावधान थे, अपनी छवि लगातार खेवनहार की बनाये रखते हुए, उन्होंने सोनिया की किसी चाल को कोई मौका ही नहीं दिया. जब तक सोनिया कुछ समझती तब तक तो गेद को बंगाली बाबु ईडन-गार्डेन की सीमा रेखा के बाहर भेज चुके थे और इस खेल में मुलायम ने दादा का भरपूर साथ दिया. आश्चर्य न करें आप लोग, है तो यह अनुमान ही परन्तु मुलायम जैसा राजनैतिक पहलवान ममता जैसी बिगडैल नेता के साथ प्रेस- कांफ्रेंस करता है और तीन में से दो बेवकूफी भरे नाम का प्रस्ताव करता है. मुलायम जैसे राजनीतिज्ञ को क्या यह आम आदमी को भी पता है कि मनमोहन को राष्ट्रपति बनाने का मतलब उनका प्रधानमंत्री के रूप में नाकाम होना है और कांग्रेस इसे सरेआम स्वीकार करेगी, वह भी ममता- मुलायम के कहने पर यह तो असंभव बात थी. सोमनाथ चटर्जी एक मृतप्राय राजनीतिज्ञ है और उनका नाम सिर्फ बंगाली प्रतीक के रूप में घसीटा गया. ले देकर बचे डॉ. कलाम. मुलायम यह भली- भांति जानते थे कि कलाम की उम्मीदवारी बेहद मजबूत होगी और कांग्रेस उसके मुकाबले में अपने सबसे मजबूत प्रत्याशी को ही मैदान में उतारेगी, और प्रणब मुखर्जी जैसा मजबूत और स्वीकार्य नेता भला कौन होता. बस तस्वीर पानी की तरफ साफ़ हो गयी और जैसे ही कांग्रेस ने दबाव में आकर प्रणब मुखर्जी को प्रत्याशी बनाया, राजनीति के माहिर मुलायम ने तगड़ा दाव खेलते हुए और बिना देरी किये उनके बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी. इससे पहले प्रत्याशी घोषित करने का जबरदस्त दबाव सपा ने अपने नेताओं के माध्यम से कांग्रेस पर बनाया कि "कांग्रेस अपने प्रत्याशी को लेकर खुद ही भ्रम में है, और उसे प्रणब के नाम की जल्द से जल्द घोषणा करनी चाहिए". यही नहीं बल्कि सपा ने जबरदस्त शंशय बनाते हुए कांग्रेस को यह साफ़ कर दिया कि वह आसानी से उसके किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेगी. परन्तु प्रणब के नाम की सार्वजानिक घोषणा होते ही सपा ने बहूत ही आसानी से उसे समर्थन दे दिया.

    दोस्तों, अब मुझे यह बात बिलकुल समझ नहीं आ रही है कि ममता बनर्जी राजनीति के इस खेल में सिर्फ इस्तेमाल हुई है अथवा उन्होंने सोनिया के वर्चस्व को तोड़ने की सार्थक पहल करते हुए अपना राजनैतिक नुकसान जानबूझकर किया है. परन्तु कोई बात नहीं ममता दीदी, आप अपने खेल में सफल रहीं और दादा ने आपको अपनी बहन संबोधित करके आपका सार्वजनिक आभार भी व्यक्त किया है. पर यदि आप इस खेल से अनजान थी तो मुलायम सिंह को भूलियेगा नहीं, उनके पलीते में चिंगारी दिखाने के लिए कमसे कम आप २०१४ लोकसभा चुनाव का इंतजार तो कर ही सकती हैं.  




    इसी कड़ी में डॉ. कलाम ने भी अपने पत्ते नहीं खोलकर बहूत ही परिपक्व नागरिक होने का सबूत पेश किया है, क्योंकि यदि इस खेल में आप घसीटे जाते तो भारत की जनता अपने आप को अपमानित महसूस करती, क्योंकि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव की एक प्रक्रिया है जिसे राजनीतिक दल एक दायरे में रह कर और बिना शोर- शराबे के पूरा करते हैं. परन्तु कांग्रेस पार्टी की आतंरिक राजनीति से यदि गलती हुई है और उस गलती के फलस्वरूप आज देश का प्रत्येक नागरिक इस चुनाव से सीधा जुड़ा महसूस कर रहा है, तब कांग्रेस पर जन भावना की अनदेखी करके जनता का अनादर ही नहीं बल्कि लोकतंत्र का सीधा अपमान करने का भी आरोप लगता, क्योंकि आपका व्यक्तित्व राजनीति से परे है. जनता से जुडाव की बात करें तो डॉ. कलाम आसमान का दर्जा रखते है, और प्रणब मुखर्जी एक सम्मानित नेता होने के बावजूद उनसे कोषों पीछें है, न सिर्फ एक व्यक्ति के तौर पर बल्कि एक सार्वजनिक छवि के तौर पर भी, साफ़ सुथरी छवि के तौर पर भी, देश को दिए गए उनके सीधे योगदान के तौर पर भी, त्याग के तौर पर भी और यही नहीं वरन राष्ट्रपति के पिछले कार्यकाल में डॉ. कलाम ने यह साबित कर दिखाया कि भारत का राष्ट्रपति किसे कहते है, उसे कैसा होना चाहिए,  जन- जन से कैसे जुड़कर काम किया जाता है. 

   प्रणब दा की असली चुनौतिया सिर्फ सोनिया गाँधी को पटखनी देने की ही नहीं है, उसमे तो वह शत- प्रतिशत कामयाब ही रहे हैं, वरन प्रणब मुखर्जी को डॉ. कलाम के सफ़र को ही आगे बढ़ाना होगा, जनभावनाओं के साथ जुड़कर चलना होगा और अलोकतांत्रिक और जनता-विरोधी कार्यों से बचना होगा. गौरतलब है पिछले दिनों अन्ना हजारे के जनांदोलन में डॉ. प्रणब मुखर्जी ने जनभावनाओं को दबाने का काम किया था, चाहे अन्ना हजारे की गिरफ़्तारी हो, किरण बेदी को डांटना हो अथवा अनेक घोटालो इत्यादि में कांग्रेस पार्टी को बचाना हो, प्रणब जी साफ़ छवि के बावजूद मंत्रिमंडल का ही एक हिस्सा रहे है और वह कांग्रेस पार्टी के घोटालों से कहीं न कहीं सीधा न सही तो परोक्ष रूप से जुड़े रहने का दाग जरूर है.  राष्ट्रपति पद पर वह किसी पार्टी या किसी आलाकमान के नहीं वरन देश के प्रतिनिधि लगे, नहीं तो भारतीय जनता खुद को ठगा सा महसूस करेगी. यह सच है कि भारत की जनता ९० फीसदी से ऊपर डॉ. कलाम को राष्ट्रपति पद के लिए पसंद करती है, परन्तु वह डॉ. प्रणब मुखर्जी को नापसंद भी नहीं करती. बस यही वह अंतर है जिसमे डॉ. कलाम के आदर्श को आगे बढ़ाना होगा प्रणब दा को और राजनीति में उनकी स्वीकार्यता और व्यापक अनुभव को देखते हुए भारतीय जनता की उम्मीदें निसंदेह बहूत स्वाभाविक है. उम्मीद है भारत देश पिछले ८ वर्ष से नेतृत्व- विहीन होने के आरोपों से उबरेगा और डॉ. प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में एक नया सवेरा सभी भारतवासियों के चेहरे की मुस्कान बनेगा.

जय हिंद !!

लेखक- 
(Writer)-
Mithilesh Kumar Singh.
(Sr. Business Reporter, Amar Bharti News Paper)



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Sunday 10 June 2012

सरकारी बंगलाः कुछ सचिन से भी सीखिए 'नेता जी'

नई दिल्ली।। महान क्रिकेटर और राज्यसभा सांसद सचिन तेंडुलकर ने भले ही टैक्स अदा करने वाली जनता को ध्यान में रखते हुए सरकारी बंगला लेने से इनकार कर दिया हो, लेकिन ऐसे भी सांसद और मंत्री हैं जो इससे इत्तफाक नहीं रखते। देश के वित्त राज्यमंत्री का मामला लीजिए। बिशम्बरदास मार्ग पर उन्हें बंगला अलॉट किया गया था, लेकिन उस बंगले समेत कुछ बंगलों को तोड़कर सीपीडब्ल्यूडी ने सांसदों के लिए मल्टिस्टोरी फ्लैट बनाने की योजना तैयार की। मंत्री महोदय के लिए विकल्प के तौर पर नया बंगला बनाया गया और उन्हें सुपुर्द भी कर दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने कई महीने तक यह बंगला खाली नहीं किया, जिसकी वजह से निर्माण कार्य अधर में लटकने का खतरा पैदा हो गया। पिछले महीने मंत्री महोदय ने बंगला खाली किया तो सीपीडब्ल्यूडी ने राहत की सांस ली। कई नेताओं का निधन हो चुका है, बावजूद इसके उनके स्मारक के नाम पर बंगले पर कब्जा बना हुआ है। बंगलों को लेकर नेताओं में ही नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेसी में भी खींचतान चलती रहती है। नेता और बंगला प्रेम - यूपी की पूर्व सीएम और बीएसपी नेता मायावती के दिल्ली में 4 सरकारी बंगले हैं - लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के 2 बंगलों पर विवाद सामने आया था। बाद में सरकार ने कहा कि एक बंगला सरकारी स्मारक बना दिया गया है। शबाना का बड़प्पन शबाना आजमी को भी बतौर राज्यसभा सांसद बंगला मिला था। अपने टर्म के आखिरी दिन आजमी बंगला खाली कर संसद सत्र में हिस्सा लेने गई थीं। उनका तर्क था कि जब वह सत्र से लौटेंगी तब सांसद नहीं रहेंगी। सांसदों के बंगले में सुविधाएं एरियाः 4000-7000 स्क्वेयर फुट बेडरूमः कम-से-कम 5 मेंटेंनसः 25 हजार से 30 हजार रुपये महीना फ्री (सालाना): 50 हजार यूनिट बिजली मुफ्त पानीः 40 हजार किलो लीटर फ्री लोकल कॉल्सः 50 हजार

कब्जे का ऐलान...10 हजार समर्थकों के साथ जय गुरु देव के आश्रम पर .....

मथुरा. कुछ दिनों पहले देह त्यागने वाले जय गुरु देव के मथुरा स्थित आश्रम में तनाव है। जय गुरु देव के शिष्य उमाकांत तिवारी आज अपने 10 हजार समर्थकों के साथ आश्रम पर कब्जा करने का ऐलान किया है। आश्रम में संभावित संघर्ष को देखते हुए प्रशासन ने एहतियातन 350 पुलिस वालों को आश्रम में तैनात कर दिया है। वहीं, शहर में धारा-144 लागू कर दी गई है। आश्रम के ट्रस्टी चरण सिंह ने उमाकांत तिवारी की आलोचना की है। जय गुरु देव की 12 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति इस पूरे विवाद की जड़ बताई जा रही है। दिवंगत जयगुरुदेव के ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। ट्रस्ट के उपाध्यक्ष राम प्रताप सिंह पर ट्रस्ट की संपत्ति के कागजात लूटने का आरोप लगा है। राम प्रताप सिंह पर लूटमार का मामला दर्ज कराया गया है वहीं राम प्रताप का कहना है कि उनपर झूठा आरोप लगाया गया है। बाबा जयगुरुदेव की ट्रस्ट के उत्तराधिकारियों की दौड़ में शामिल पंकज यादव पर साजिश रचने का आरोप लगाया है। राम प्रताप सिंह ने कहा कि खुद को उत्तराधिकारी बताने वाले पंकज यादव तो ट्रस्ट के सदस्य भी नहीं है।

विकल्पों की सूची में सबसे ऊपर दादा

नई दिल्ली। नए राष्ट्रपति के लिए ज्यादातर संभावनाएं और समीकरण वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के नाम पर आकर सिमट जा रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी होने में अब तीन दिन ही बचे हैं, लेकिन संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की बंद मुट्ठी के चलते किसी दूसरे नाम के विकल्प अभी भी खुले माने जा रहे हैं। संकेत हैं कि सोनिया 72 घंटों के भीतर राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी की घोषणा कर सकती हैं। 15 जून के आसपास संप्रग के सभी दलों की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का परचा भरवाया जाएगा। पिछले सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के चयन का अधिकार पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दिया था। तबसे कांग्रेस अध्यक्ष ने सहयोगी दलों से राय-मशविरा तेज कर दिया है। इस कड़ी में सोनिया ने द्रमुक सुप्रीमो एम. करुणानिधि से फोन पर बात की। कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की इस बाबत तृणमूल सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से फोन पर मंत्रणा हो चुकी है। शुक्रवार रात को अहमद पटेल ने नॉर्थ ब्लॉक जाकर प्रणब मुखर्जी से लंबी बातचीत भी की। वहां से लौटने के बाद पटेल सीधे दस जनपथ गए और फिर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ करीब एक घंटे तक उनकी बैठक चली। सूत्रों के मुताबिक, सोनिया की कोशिश है कि राष्ट्रपति पद के संप्रग के उम्मीदवार के नामांकन के समय गठबंधन के सभी घटकों के प्रमुख नेता मौजूद रहें। वह इस नामांकन को संप्रग की एकजुटता के रूप में पेश करना चाहती हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर संप्रग से मुहर लगवाने के बाद कांग्रेस के मैनेजर राजग समेत दूसरे विपक्षी दलों के साथ सर्वसम्मति का प्रयास भी करेंगे। कांग्रेस के उच्चपदस्थ सूत्र मान रहे हैं कि मौजूदा हालात में संप्रग और उसके बाहर सबसे ज्याद सहमति प्रणब मुखर्जी के नाम पर ही बन सकती है। माना जा रहा है कि ममता बनर्जी भी अंदर से भले न चाहती हों, लेकिन प्रणब के नाम का वह विरोध नहीं कर सकतीं। अभी सरकार में प्रणब की अनिवार्यता और दूसरे कुछ विषय उठाकर कांग्रेस में एक ताकतवर खेमा अभी भी उनकी दावेदारी पर सवाल उठा रहा है। इस सियासी असमंजस में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के भी रायसीना हिल्स पहुंचने की संभावनाएं पूरी तरह खारिज नहीं की जा रही हैं। शनिवार को कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा भी कि अभी राष्ट्रपति के लिए किसी का नाम तय नहीं हुआ है। इस पर चर्चा जारी है।

हीरो बनने को शक्ल और अक्ल जरूरी नहीं

नई दिल्ली। आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में अब तक विभिन्न सामाजिक मुद्दों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, ऑनर किलिंग, दहेज प्रथा पर चर्चा हो चुकी है। 13 कड़ियों वाले इस शो का छठा एपिसोड इस बार हीरोइज्म यानी हीरो बनने की तमन्ना रखने वाले करोड़ों लोगों को समर्पित होगा। प्रोमो में ही आमिर ने यह साफ कर दिया है कि हीरो बनने के लिए शक्ल और अक्ल की जरूरत नहीं होती। हालाकि यह स्पष्ट नहीं किया कि इसके लिए किस चीज की जरूरत होती है। अब यह तो एपिसोड देखने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा। ज्ञात हो कि पिछले एपिसोड में ऑनर किलिंग का मुद्दा उठाने की वजह से आमिर को हरियाणा की खाप पंचायतों का विरोध झेलना पड़ रहा है। खाप पंचायतों ने शो पर प्रतिबंध लगाने की माग की है। पाचवें एपिसोड में आमिर ने जहा ऑनर किलिंग का शिकार हुए प्रेमियों के परिवार वालों से बात की वहीं खाप को भी बोलने का मौका दिया। बातचीत के दौरान आमिर ने आमंत्रित खाप सदस्यों से पूछा था कि आपके बनाए कानून बड़े है या फिर भारत सरकार के, जो हर बालिग को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है। अपने बचाव में खाप सदस्यों ने कहा था कि मीडिया उन्हें गलत तरीके से पेश कर रहा है। शो में हरियाणा की मेहम चौबिसी खाप को आमंत्रित किया गया था। खाप का पक्ष रखते हुए रणबीर सिंह ने कहा था कि इस तरह की शादियों का गलत परिणाम वैज्ञानिक तौर पर भी साबित हो चुका है।

Monday 4 June 2012

कुछ ऐसे अपना वो कर्ज चुका रही हैं सानिया मिर्जा


टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा ने पेस भूपति के साथ मिलकर फ्रेंच ओपन टेनिस टूर्नामेंट के क्वार्टरफाइनल में प्रवेश कर लिया। सानिया ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि उन्होंने शादी भले ही एक पाकिस्तानी से की है, लेकिन उनका दिल आज भी हिंदुस्तानी है। बड़े टूर्नामेंटों में अपने शानदार खेल से सानिया आज भी अपने देश के नमक का कर्ज चुका रही हैं।

विधायक पर गोली बरसाने वाले आरोपी गिरफ्तार

राजधानी दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में निर्दलीय (इनेलो)विधायक पर हमलावरों ने उनके दफ्तर के बाहर गोलियां बरसाई। आनन फानन में भरत को जनकपुरी के चंदन देवी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विधायक को तीन गोलियां लगी। गोलियों को शरीर से निकाल लिया गया है और डॉक्टरों का कहना है कि मरीज की हालत अभी खतरे से बाहर है। नजफगढ़ के विधायक भरत सिंह पर हमले के मामले में पुलिस ने 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। ये सारे आरोपी नजफगढ़ के ही रहने वाले हैं। पुलिस के मुताबिक, भरत सिंह पर हमला आपसी रंजिश के चलते किया गया था। इस मामले में आरोपियों से पुलिस की पूछताछ जारी है।

सार्वजनिक बहस सनसनीखेज बनकर रह गई: पीएम

कोलकाता पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीयों में बढ़ रही असहिष्णुता के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि लगता है सार्वजनिक बहस सनसनीखेज बनकर रह गई है। साथ ही पीएम ने कहा कि मैं देख रहा हूं कि हाल के दिनों में वैचारिक मतभेद रखने वाले हमारे लोगों में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है जो प्रचलित मान्यता के विपरीत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय सभ्यता में सामाजिक सद्भाव को संरक्षित रखने और अलग-अलग विचार, पहचान और सांस्कृतिक मतभेदों को समाहित करके सुलह को बढ़ावा देने की समृद्ध परंपरा है। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय विज्ञान कांग्रेस समारोह को संबोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा, मैं वैज्ञानिक समुदाय के लोगों से आग्रह करता हूं कि वे मुखर हों और देश के सामने खड़े मुद्दों पर एक सूचनापरक और तर्कसंगत बहस खड़ी करने में प्रभावी योगदान दें। हमारे वैज्ञानिकों की आवाज महत्वपूर्ण है और उसे सुना जाना चाहिए। उन्होंने विज्ञान को विकास को गति देने के साधन के रूप में इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में विज्ञान पर बोझ बढ़ेगा।