Showing posts with label political news. Show all posts
Showing posts with label political news. Show all posts

Friday, 31 May 2013

नए रूप में आया जीमेल, ऐसे पा सकते हैं आप तुरंत





















अगर आप जीमेल यूजर हैं, तो यह खबर आपके लिए जरूरी है। आपका जीमेल इनबॉक्स जल्द ही नए रूप में नजर आएगा। साथ ही आपके लिए ई-मेल मैनेज करना अब और आसान हो जाएगा। आप अपने इनबॉक्‍स को अपने हिसाब से कंट्रोल कर सकेंगे। गूगल ने टैब सुविधा के साथ जीमेल इनबॉक्‍स का नया डिजाइन पेश किया है। नया डिजाइन पीसी और मोबाइल दोनों तरह के यूजर को ध्‍यान में रखते हुए बनाया गया है। गूगल का मानना है कि इस नए डिजाइन से लोगों के लिए जरूरी और गैर-जरूरी मेल में अंतर करना आसान हो जाएगा।

टैब्स से होगी आसानीः जीमेल का नया इनबॉक्स किसी वेब ब्राउज़र की तरह नजर आएगा। गूगल ने इनबॉक्स में पांच टैब्स की सुविधा दी है- प्राइमरी, सोशल, प्रमोशनल, फोरम और अपडेट्स। आपके जीमेल अकाउंट में आने वाले अलग तरह के मेल्स को इन अलग-अलग टैब्स में बांटा जाएगा। इस तरह जरूरी मेल्‍स को पढ़ना आसान हो जाएगा। साथ ही एक नजर में ही पता चल जाएगा कि आपके इनबॉक्‍स में नए ई-मेल कौन से हैं और उन्हें पढ़ना आपके लिए कितना जरूरी है।

हर मेल का ठिकाना तय होगा: जीमेल के नए इनबॉक्‍स में आप अपने ई-मेल्‍स को अलग-अलग कैटिगरीज में बांट सकेंगे। आपके जरूरी मेल प्राइमरी कैटिगरी में आएंगे। टि्वटर-फेसबुक जैसी सोशल साइट्स से जुड़े ईमेल सोशल टैब में चले जाएंगे। ग्रुपॉन-फैब जैसी कंपनियों से आने वाले ऑफर प्रमोशन कैटिगरी में होंगे। नोटिफेकिशेंस, बिल जैसे मेल अपडेट टैब के जरिए दिखाई देंगे। ग्रुप ई-मेल्स फोरम में दिखेंगे। नए इनबॉक्स को आसानी से कस्‍टमाइज भी कर सकते हैं। ड्रैग और ड्रॉप के जरिए ई-मेल्‍स एक टैब से दूसरे टैब में भेजे जा सकेंगे। हालांकि अभी जीमेल ने यूजर्स को अपनी मर्जी के टैब बनाने की सुविधा नहीं दी है।

कैसे मिलेगा नया जीमेलः आने वाले कुछ हफ्तों में जीमेल के सभी यूजर्स नए तरह का इनबॉक्‍स इस्‍तेमाल कर पाएंगे। अगर आप यह नया इनबॉक्स तुरंत पाना चाहते हैं, तो जीमेल सेटिंग्स में जाकर Configure inbox पर क्लिक करिए। जिन्हें पुराना वाला जीमेल इनबॉक्‍स ही पसंद है, उन्हें भी घबराने की जरूरत नहीं है। सारे टैब्‍स स्विच ऑफ कर देने पर जीमेल इनबॉक्स पुराने रूप में ही दिखेगा।

Tuesday, 2 April 2013

मोदी के सम्मान में ममता का अड़ंगा


कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह पर हैं। बंगाल सरकार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में कोलकाता में कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। भाजपा की बंगाल इकाई नेताजी इंडोर स्टेडियम में यह सम्मान कार्यक्रम आयोजित करना चाहती थी। भाजपा का आरोप है कि राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से अनुमति नहीं दे रही है। कोलकाता का यह स्टेडियम प्रदेश सरकार के खेल विभाग का है और इसमें कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति सरकार देती है। 

भाजपा की बंगाल इकाई के अध्यक्ष राहुल सिन्हा का कहना है कि उन्होंने 18 मार्च को स्टेडियम बुक कराने के लिए संपर्क किया था, लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। बाद में उन्हें बताया गया कि नौ अप्रैल को स्टेडियम खाली है। जब स्टेडियम को नौ अप्रैल के लिए बुक कराने की कोशिश की गई तब भी उन्हें इजाजत नहीं दी गई। नेताजी स्टेडियम में अभिनंदन समारोह के साथ ही तमाम व्यवसायियों को नरेंद्र मोदी संबोधित करने वाले थे। इसके बाद राहुल सिन्हा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस मामले में हस्तक्षेप करने का लिखित अनुरोध किया।

सिन्हा का कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से उन्हें जानकारी दी गई है कि स्टेडियम खाली नहीं है। इस मामले में मुख्यमंत्री कोई मदद नहीं कर सकती हैं। नौ अप्रैल को नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल दौरे पर आ रहे हैं। वह अब एक पांच तारा होटल में बंगाल के उद्योगपतियों को संबोधित करेंगे।

Tuesday, 19 March 2013

डीएमके ने राष्ट्रपति को सौंपी समर्थन वापसी की चिट्ठी


श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर यूपीए के घटक दल द्रमुक ने मंगलवार को देर रात राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंप दी। दिन में पार्टी प्रमुख करुणानिधि ने इसकी घोषणा की और देर रात पार्टी नेताओं ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर उन्हें इस संबंध में चिट्ठी सौंपी।

डीएमके नेता टीआर बालू ने कहा कि बुधवार को सुबह 11 बजे उनकी पार्टी के मंत्री पीएम मनमोहन सिंह से मिल कर अपने इस्तीफे सौंप देंगे। यूपीए सरकार में द्रमुक के एक कैबिनेट समेत पांच मंत्री हैं।

डीएमके से नौ साल पुराना नाता टूटने के बाद यूपीए सरकार ‘नंबर गेम’ के सियासी संकट में घिर गई है। हालांकि हमेशा की तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सरकार की संकटमोचक बनीं और उन्होंने सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखने की बात कही।

इसके बावजूद सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने रात को यह कह कर कांग्रेस को चौंका दिया कि उनकी पार्टी का संसदीय बोर्ड बैठक कर हालत पर विचार करेगा।

करुणानिधि के दांव से हिली सरकार ने दावा किया है कि यूपीए को बहुमत हासिल है।

केंद्र सरकार से द्रमुक का हटाना इसलिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि यूपीए में कांग्रेस के बाद द्रमुक के लोकसभा में सबसे ज्यादा 18 सांसद हैं।

द्रमुक के ऐलान के बाद यूपीए के पास अब 233 सांसद हैं, जबकि सपा, बसपा, राजद और जेडीएस के 50 सांसदों का बाहर से समर्थन मिल रहा है।

इस तरह सरकार के पास द्रमुक के अलावा बहुमत के लिए जरूरी 271 सांसदों की संख्या से कुछ अधिक सदस्य (233+50=283) हैं। सत्ताबल के लिए जरूरी आंकड़ों बावजूद द्रमुक के अलग होने से सरकार की राजनीतिक साख पर गहरे सवाल तो खड़ा हो ही गए हैं।

इससे पहले करुणानिधि ने चेन्नई में अपने मंत्रियों को हटाने का ऐलान करते हुए यूपीए सरकार पर आरोप लगाया कि उसने श्रीलंका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में पेश होने वाले प्रस्ताव को मजबूत करने के लिए द्रमुक के सुझाए संशोधनों पर विचार तक नहीं किया।

उन्होंने कहा कि ऐसी सरकार में बने रहने का क्या मतलब जिसमें तमिल ईलम के लोगों को कोई फायदा नहीं मिले।

हालांकि करुणानिधि ने यूपीए में वापसी का रास्ता यह कहते हुए खुला रखा कि अगर सरकार 21 मार्च से पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश होने वाले अमेरिका समर्थित प्रस्ताव में उनके सुझाए दो संशोधनों को शामिल करने के प्रस्ताव को पारित करती है तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं।

द्रमुक के फैसले से मचे हड़कंप के बावजूद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार तमिल मुद्दे पर चर्चा करने के लिए तैयार है। उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा।

सूत्रों के अनुसार सरकार ने द्रमुक को मनाने के लिए श्रीलंका में तमिलों की स्थिति पर प्रस्ताव के मसौदे पर काम करना शुरू कर दिया है।

यूपीए के रणनीतिकार इसके लिए विपक्ष को भी मनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं बैक चैनल डिप्लोमेसी के जरिए श्रीलंका पर अमेरिकी प्रस्ताव में मध्यमार्गी संशोधन की राह तलाशी जा रही है।

Sunday, 1 July 2012

विधायक के साथ दुर्व्यवहार मामले में पांच गिरफ्तार

कांग्रेस विधायक रूमी नाथ और उनके दूसरे पति पर कथित तौर पर हमला करने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस आयुक्त प्रदीप पुजारी ने बताया की महिला विधायक पर हमला मामले में पांच संदिग्ध व्यक्तियों को यहां पर गिरफ्तार किया गया। नाथ और उनके पति को शुक्रवार को लोगों के एक गुट ने पिटाई कर घायल कर दिया था। यह गुट विधायक द्वारा अपने पहले पति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी किए जाने को लेकर नाराज था। विधायक और उनके पति को गुवाहाटी पहुंचाया गया और उपचार कराया गया। उनकी हालत खतरे से बाहर बतायी जा रही है। पुजारी ने बताया कि कांग्रेस की विधायक ने एक एफआईआर दर्ज कराई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भीड़ ने राजनीतिक इरादों से उनपर हमला किया। इस मामले की जांच की जा रही है। नाथ ने अपने उपर हमले को राजनीतिक साजिश करार देते हुए कहा, मुक्षे आंतरिक और बाहरी तौर पर कुछ चोट पहुंची है। आज से इलाज करा रही हूं और मुझे लगता है कि जल्द ही ठीक हो जाऊंगी 




ओर अधिक हिंदी न्यूज़ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे ......   www.AmarBharti.com

Saturday, 21 April 2012

भाजपा की जीत या कांग्रेस की हार : अजय पाण्डेय

हालांकि कांग्रेस इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती कि दिल्ली नगर निगम चुनाव, विधानसभा चुनाव का सेमी फाइनल है, वो इस बात को सिरे से खारिज कर रही है कि इन चुनावों के परिणाम विधानसभा चुनावों पर असर डालेंगे । कांग्रेसी नेता इसे नगर निगम चुनाव के रूप में ही देखने की नसीहत दे रहे और चुनावी सेमी पफाइनल को मीडिया की उपज बता रहे हैं। अब कांग्रेस चाहे इसे मीडिया की उपज बताये फिर चुनाव बाद मीडिया में अक्सर दी जाने वाली चुनावी दलील दे, यह परिणाम दिल्ली की बदलती हुई राजनीतिक परिपाटी को जरूर दर्शाता है। किसी भी राज्; में जब स्थानी; चुनाव होते हैं तो सबसे ज्यादा उस राज्य की सत्ताधारी पार्टी और सरकार की साख दाव पर लगी रहती है। ;हां भी वैसा ही हुआ चुनाव की कमान प्रदेश में सत्तानशीं शीला दीक्षित को सौंप दी गई। उन्होंने दमखम से पार्टी का प्रचार प्रसार तो किया लेकिन उस प्रचार में इतना भी दम नहीं था जिससे वो नगर निगम के तीनों हिस्सों में से किसी एक में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके। बहरहाल हर चुनाव के बाद हारी हुई पार्टी एक सामान्य और पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए चुनावी मंथन जरूर करती है जैसा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गाँधी ने किया था। लेकिन हकीकत यह है कि कोई भी पार्टी इन चुनावी मंथनों से सबक नहीं लेती। वस्तुतः दिल्ली की जो स्थिति है वो केन्द सरकार बनाम राज्य सरकार बनाम स्थानी; निकायों की त्रिगुट ध्रुवों में बंटी हुई है। कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते समय यह भूल गई कि यह भ्रष्टाचार उसी की कोख से पैदा होकर, उसी के आगोश में पोषित हुआ था, ,ऐसे में कांग्रेस द्वारा अपने ही राज्य में भ्रष्टाचार की बात करना उसकी राजनीतिक परिपक्वता पर सवालिया निशान लगाता है। कांग्रेस के कुछ नेता कहते हैं यह स्थानी; चुनाव था, जिसमें स्थानी; मुद्दे हावी होते हैं यह सही भी है लेकिन क्या कांग्रेस के पास इस बात का जवाब है कि वो उत्तर प्रदेश में क्यों हार गई? वहां भी कांग्रेस ने स्थानी; मुद्दों के ही तार छेड़े थे। राहुल से लेकर बड़े-बड़े पार्टी सिपहसालारों ने स्थानी; मुद्दों तक की ही बात की। भ्रष्टाचार, महंगाई आदि जैसे मुद्दों पर जब भी पूछने की कोशिश की गई सबने यही कहा कि यह राज्य स्तरीय चुनाव है जहां यहीं के मुद्दे हावी रहेंगे लेकिन प्रदेश में क्या हुआ सबके सामने है। दरअसल इस तरह के बयां राजनीतिक परम्परा के निर्वहन के अलावा कुछ और नहीं। कांग्रेस जिस चुनाव को जीतने के लिए पूर्व में न जाने कितने जतन किए सत्ता में रहते हुए उसने निगम को तीन हिस्सों तक में बांट दिया । लेकिन उसके सारे दाव उल्टे पड गए । आज यह प्रश्न दीगर है कि कांग्रेस हार के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएगी ? क्या भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया इसलिए उसकी हार हुई, या फिर उसने भ्रष्टाचार, महंगाई आदि को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को यह भरोसा दिला दिया कि कांग्रेस ने मान लिया कि वाकई राजधानी में भ्रष्टाचार और मंहगाई है और दिल्ली की जनता इतना तो जानती ही है कि यह मंहगाई और भ्रष्टाचार की जननी कौन है?

Friday, 6 April 2012

यूपी में पूरे घर के बदल डालेंगे राहुल

नई दिल्ली।। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार पर मंथन के बाद साफ हो चला है कि पार्टी के कई बड़े नेताओं और मंत्रियों पर गाज गिर सकती है। कांग्रेस के दिल्ली स्थित वॉर रूम में दो दिन की समीक्षा बैठक के बाद पार्टी महासचिव राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश संगठन भंग कर नई टीम खड़े करने के संकेत भी दिए।

समीक्षा बैठक के दौरान राहुल ने अपने तेवरों से पार्टी नेताओं को साफ कर दिया है कि अब वह न सिर्फ हार की जिम्मेदारियां तय करने की ठान चुके हैं, बल्कि बड़े बलिदान लेने के मूड में भी हैं। उन्होंने इशारों में यहां तक कहा कि जिन नेताओं का जनाधार नहीं हैं, उन्हें जाना ही होगा। यूपी से पार्टी विधायक नवाब काजिम अली खान का कहना था कि राहुल ने साफ कहा है कि पार्टी के जिन लोगों ने सहयोग नहीं किया, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। एक महीने के भीतर असर दिखने लगेगा।

दो दिन तक चली समीक्षा बैठक में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से लेकर केंद्रीय मंत्रियों की बयानबाजी, आपसी कलह और इन सबसे ऊपर लचर संगठन के असहयोग का मुद्दा ही तारी रहा। गुरुवार को 150 से ज्यादा हारे प्रत्याशियों और शुक्रवार को 28 विधायकों और पूर्व सांसदों से बातचीत के बाद आखिर में राहुल ने यूपी कोटे के मंत्रियों और सांसदों से चर्चा की। एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जब उन्होंने पार्टी संगठन की कमियों की ओर ध्यान दिलाया, तो राहुल ने कहा, 'अभी तक 'हाथ' की कोमलता देखी है। अगले 15 दिनों में इसकी सख्ती का अहसास भी सबको हो जाएगा।'

सब सुनने के बाद राहुल ने कहा कि अगर कोई मंत्री सोचता है कि वह गलती करते रहें और कोई कार्रवाई नहीं होगी तो ऐसा नहीं है। बाहरियों को टिकट का मुद्दा भी उठा, जिस पर राहुल का कहना था, कहां गलती हुई, वह समझते हैं। मगर बाहर से आए लोगों को वोट भी मिले हैं। अब संगठन और केंद्रीय मंत्रियों पर कार्रवाई पर हामी भरवाने के बाद राहुल के अगले कदम पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

जिस ट्रैक्टर ने नरेंद्र को कुचला, उसी से पुलिस वसूल रही थी रेत!

भोपाल। जिस बानमौर पुलिस थाने पर आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार बैठे थे, उसकी बाउंड्रीवॉल के लिए रेत और पत्थर उन्हीं ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से वसूला जा रहा था, जिन्होंने नरेंद्र कुमार को कुचल डाला। यह वसूली भी थाना प्रभारी सीबीएस रघुवंशी करते थे, जिनके नरेंद्र कुमार के साथ संबंधों की पड़ताल सीबीआई जांच का मुख्य बिंदु है।

डीबी स्टार टीम ने मामले से जुड़ी कई घटनाओं की पैरेलल इन्वेस्टीगेशन की तो निकला कि आईपीएस नरेंद्र कुमार को अपने ही अधीनस्थों का पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। सीबीआई की टीम ने गत 15 व 16 मार्च को टीआई रघुवंशी तथा थाने के अन्य स्टाफ से अकेले में घंटों बातचीत की। हालांकि सीबीआई की टीम ने मीडिया से बात नहीं की, लेकिन थाने में मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि सीबीआई की टीम जांच में लगातार यह जानने की कोशिश कर रही है कि एसडीओपी और थाना प्रभारी के संबंध किस तरह के थे?

नरेंद्र कुमार के साथ जो भी हुआ उसकी जांच सीबीआई कर रही है। लेकिन लोग जो कह रहे हैं, उससे प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठ रहे हैं?

वायरलैस मैसेज पर भी...

मनोज ट्रैक्टर को भगाते हुए थाने से 700 मीटर दूर राजे पेट्रोल पंप तक ले जाता है। पीछे पुलिस की गाड़ी को आता देख, मनोज ट्रैक्टर को बीच सड़क से काटता है तथा डिवाइडर के ऊपर से निकालते हुए दूसरी रोड पर यू टर्न ले लेता है। मनोज ट्रैक्टर भगाता है और कुछ कदम की दूरी पर स्थित राजे वेयर हाउस की तरफ कच्ची रोड पर मोड़ लेता है।

नरेंद्र कुमार टैक्टर को मुख्य सड़क पर ही रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह नहीं रुकता। फिर वे 40 फीट दूर तक दौड़ लगाते हुए ट्रॉली पर चढ़ जाते हैं। इसके बाद ट्रॉली का एक पहिया गड्ढे में फंस जाता है और इसी जद्दोजहद के बीच ये घटना हो जाती है। इस दौरान एसडीओपी के साथ सिर्फ दो आरक्षक राजकुमार और किशन ही रहते हैं, जो उनकी मदद को आगे आने के बजाय दूर खड़े रहते हैं। इतना ही नहीं बार-बार सूचना देने के बाद भी थाना प्रभारी नहीं आते हैं।

थाने पर रुकती थीं ट्रॉलियां फिर मनोज ने क्यों नहीं रोकी

वहीं बानमौर के कुछ स्थानीय लोगों का भी कहना है कि बानमौर थाने के सामने से गुजरने वाली रेत व पत्थर की ट्रॉलियां थाने पर रुकती थीं। इन ट्रॉलियों पर लदे सामान में से कुछ पुलिसकर्मी उतरवा लेते थे। इसकी वजह थी थाने की २क्क् मीटर की बाउंड्रीवॉल का निर्माण। इसके लिए शासन ने बाकायदा १.99 लाख रुपए मंजूर किए थे, लेकिन नगद सामान मंगवाने के बजाय थाने वाले सामने से गुजरने वाली ट्रॉलियों को रोक कर उनसे ही पत्थर व रेत उतरवा लेते थे। यह बात नरेंद्र कुमार को नापसंद थी।

इत्तेफाक से घटना वाले दिन भी जब थाने के सामने से ट्रैक्टर गुजरा, तो एसडीओपी नरेंद्र कुमार ने उसे रुकने का इशारा किया। लेकिन चालक मनोज ने ट्रैक्टर रोकने के बजाय और तेज चलाकर भागने की कोशिश की। इस पर नरेंद्र कुमार को कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने उसका पीछा किया। इसके बाद काफी देर तक चोर-सिपाही का खेल चलता रहा, लेकिन बानमौर थाने की पुलिस ने उनकी मदद करना तो दूर, उनके आदेशों तक को अनसुना कर दिया। लोगों का कहना है कि अगर उस दिन स्थानीय पुलिस समय रहते अलर्ट हो जाती तो शायद नरेंद्र कुमार की जान बच सकती थी?

ऐसे हुआ बानमौर टीआई रघुवंशी का पर्दाफाश

डीबी स्टार टीम की पड़ताल में पता चला कि इस हादसे से थोड़ी देर पहले ही ‘भगीता का पुरा’ में एक समुदाय विशेष के लोगों के बीच झगड़ा हुआ था। इसकी सूचना देने पीड़ित थाने पहुंचे तो थाना प्रभारी रघुवंशी नहीं मिले। तब पीड़ितों ने फोन पर नरेंद्र कुमार को सूचना दी। उन्होंने टीआई को मौके पर पहुंचने के आदेश दिए तथा खुद भी पहुंच गए। लेकिन रघुवंशी नहीं पहुंचे। इसके बाद थाने पर लौटने के कुछ देर बाद ही थाना प्रभारी फिर गायब हो गए, जबकि एसडीओपी थाने पर ही मौजूद रहे।

एसडीओपी का आदेश नहीं माना

कुछ देर बाद थाने के सामने से पत्थरों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली क्रमांक एमपी 06 जे.ए. 3112 गुजरती है, जिसे नरेंद्र कुमार रुकने का इशारा करते हैं। चालक मनोज गुर्जर ट्रैक्टर को नहीं रोकता है तथा स्पीड बढ़ाकर आगे निकल जाता है। इसके बाद नरेंद्र कुमार अपने दो आरक्षकों राजकुमार व किशन को लेकर ट्रैक्टर का पीछा करते हैं तथा वायरलैस पर थाना प्रभारी को भी फोर्स के साथ आने को कहते हैं।

थाना प्रभारी व एसडीओपी के संबंध थे तनावपूर्ण

सीबीएस रघुवंशी तथा नरेंद्र कुमार के संबंध तनावपूर्ण थे। इसकी वजह एसडीओपी की ईमानदारी थी। उन्होंने आते ही पत्थर व रेत का अवैध कारोबार बंद करा दिया था। इन धंधों से बानमौर थाने को डेढ़ लाख रु. प्रतिमाह मिलते थे। थाने की बाउंड्रीवॉल के निर्माण में जो भी पत्थर लगा है, वह खरीदा नहीं गया बल्कि ट्रॉलियों को जबरिया रुकवाकर उतरवाए जाते थे।

- भारत सिंह गुर्जर, उपाध्यक्ष, नगर पंचायत, बानमौर

अनुत्तरित हैं ये सवाल

क्या तेजतर्रार युवा आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार ने बानमौर एसडीओपी बनते ही खनिज माफियाओं पर नकेल डाल दी थी? क्या इस वजह से थाने को हर माह होने वाली डेढ़ लाख रुपए की कमाई बंद हो गई थी? क्या इस बात को लेकर एसडीओपी और थाना प्रभारी के संबंध सामान्य नहीं थे? क्या इस टकराव के चलते ही एसडीओपी के बुलाने पर भी थाना प्रभारी तत्काल मौके पर नहीं पहुंचे?

हत्या या हादसा यही है जांच का मुख्य विषय

जांच चाहे मप्र पुलिस करे या फिर सीबीआई, सबसे पहले तो जांच का मुख्य बिंदु उन आरोपों की सच्चाई पता लगाना है, जिसमें कहा जा रहा है कि नरेंद्र कुमार की हत्या की गई है। साथ ही यह पता लगाना होगा कि ट्रैक्टर चालक का उद्देश्य क्या था? ट्रैक्टर-ट्रॉली पर चढ़ने के वक्त नरेंद्र और चालक मनोज गुर्जर के बीच क्या हाथापाई हुई थी? ये सभी बातें जांच का विषय होना चाहिए।

-श्याम स्वरूप शुक्ला, रिटायर एडीजी, मप्र पुलिस

नरेंद्र कुमार के साथ मेरे मधुर संबंध थे

नरेंद्र कुमार से मेरे संबंध मधुर थे। ज्वाइनिंग के वक्त वे मेरे घर 15 दिन रुके थे। घटना के दिन उनके साथ बैठे पुलिसवालों ने थाने पर कॉल किया था। कॉल आते ही बैकअप भेजा गया, लेकिन तब तक घटना हो चुकी थी। उस वकत मैं थाने से दूर दूसरे प्वाइंट की सर्चिग पर था। बाउंड्रीवॉल का निर्माण भी बाकायदा रॉयल्टी की रसीदें कटवाकर लिए गए पत्थर से ही किया गया है।

-सी.बी.एस रघुवंशी, तत्कालीन टीआई, बानमौर थाना


www.amarbharti.com

Saturday, 25 February 2012

दो मंत्रियों पर भारी पड़ सकता है सोमवार

नई दिल्ली। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के बाद अब केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी आचार संहिता उल्लंघन के घेरे में हैं। राष्ट्रपति शासन लगने संबंधी बयान पर एतराज जताते हुए चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी कर सोमवार की दोपहर तक सफाई देने को कहा है। बेनी की सुनवाई भी उसी शाम दोनों पक्षों की मौजूदगी में होगी। इसलिये सोमवार दो मंत्रियों पर भारी पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार न बनने की दशा में राष्ट्रपति शासन लगने का बयान देना जायसवाल के लिए मुश्किलों का सबब बन गया। एक तरफ जहां कांग्रेस नेतृत्व को यह बयान रास नहीं आ रहा है, वहीं आयोग ने भी नोटिस जारी कर दिया है। शुक्रवार को जारी नोटिस में आयोग ने माना है कि पहली नजर में उनका बयान आचार संहिता का उल्लंघन है जिसमें मतदाताओं को परोक्ष धमकी दी गई है।

उन्हें सोमवार की दोपहर दो बजे तक अपनी सफाई देने को कहा गया है। उधर, बेनी का मामला भी सोमवार तक टल गया है। शिकायतकर्ता और भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के आग्रह पर सुनवाई सोमवार की शाम को होगी। ध्यान रहे कि उत्तार प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम आरक्षण बढ़ाने के बयान पर घिरे बेनी के आचरण पर आयोग ने पहले ही अपनी सख्त आपत्तिजता दी थी। बेनी ने आग्रह किया था कि कोई फैसला लेने से पहले उन्हें सुनवाई का एक मौका दें। सुनवाई के दौरान शाहनवाज को भी मौजूद रहना था। लेकिन बाद में उनके आग्रह पर सुनवाई की तिथि सोमवार तक बढ़ा दी गई है।

गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष के अधिवक्ता भी मौजूद होते हैं। उनकी दलील सुनने के बाद आयोग अपना निर्णय लेता है। वैसे यह तय माना जा रहा है कि बेनी को कम से कम आचार संहिता उल्लंघन का दोषी करार दिया जाएगा। जबकि, भाजपा की ओर से कुछ कठोर निर्णय लेने के लिए दबाव बनाया जाएगा। गौरतलब है कि कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के मामले में आयोग ने राष्ट्रपति को भी पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी। राष्ट्रपति ने कार्रवाई के लिए उस पत्र को प्रधानमंत्री को भेज दिया था।

मायावती सरकार के सबसे 'ताकतवर' मंत्री मुश्किल में

लखनऊ. चुनावी माहौल के बीच मायावती की बसपा पार्टी को चुनाव आयोग ने दिया एक बड़ा झटका। उत्तरप्रदेश के लोकायुक्त ने बुधवार को मायावती के करीबी और मायावती सरकार के सबसे प्रभावशाली मंत्री माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की है।
नसीमुद्दीन के खिलाफ यह आदेश आय से अधिक संपत्ति के मामले में दिया गया है। इसके साथ ही लोकायुक्त ने इस मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से कराने की सिफारिश भी की। आपको बता दें कि नसीमुद्दीन उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के काफी करीबी माने जाते हैं। हाल ही में खबरों की सुर्खियों में आए शराब व्यवसायी पोंटी चड्ढा से भी नसीमुद्दीन के काफी घनिष्ठ संबंध हैं। पोंटी चड्ढा के खिलाफ फिलहाल जांच चल रही है।