Saturday 21 April 2012

भाजपा की जीत या कांग्रेस की हार : अजय पाण्डेय

हालांकि कांग्रेस इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती कि दिल्ली नगर निगम चुनाव, विधानसभा चुनाव का सेमी फाइनल है, वो इस बात को सिरे से खारिज कर रही है कि इन चुनावों के परिणाम विधानसभा चुनावों पर असर डालेंगे । कांग्रेसी नेता इसे नगर निगम चुनाव के रूप में ही देखने की नसीहत दे रहे और चुनावी सेमी पफाइनल को मीडिया की उपज बता रहे हैं। अब कांग्रेस चाहे इसे मीडिया की उपज बताये फिर चुनाव बाद मीडिया में अक्सर दी जाने वाली चुनावी दलील दे, यह परिणाम दिल्ली की बदलती हुई राजनीतिक परिपाटी को जरूर दर्शाता है। किसी भी राज्; में जब स्थानी; चुनाव होते हैं तो सबसे ज्यादा उस राज्य की सत्ताधारी पार्टी और सरकार की साख दाव पर लगी रहती है। ;हां भी वैसा ही हुआ चुनाव की कमान प्रदेश में सत्तानशीं शीला दीक्षित को सौंप दी गई। उन्होंने दमखम से पार्टी का प्रचार प्रसार तो किया लेकिन उस प्रचार में इतना भी दम नहीं था जिससे वो नगर निगम के तीनों हिस्सों में से किसी एक में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके। बहरहाल हर चुनाव के बाद हारी हुई पार्टी एक सामान्य और पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए चुनावी मंथन जरूर करती है जैसा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गाँधी ने किया था। लेकिन हकीकत यह है कि कोई भी पार्टी इन चुनावी मंथनों से सबक नहीं लेती। वस्तुतः दिल्ली की जो स्थिति है वो केन्द सरकार बनाम राज्य सरकार बनाम स्थानी; निकायों की त्रिगुट ध्रुवों में बंटी हुई है। कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते समय यह भूल गई कि यह भ्रष्टाचार उसी की कोख से पैदा होकर, उसी के आगोश में पोषित हुआ था, ,ऐसे में कांग्रेस द्वारा अपने ही राज्य में भ्रष्टाचार की बात करना उसकी राजनीतिक परिपक्वता पर सवालिया निशान लगाता है। कांग्रेस के कुछ नेता कहते हैं यह स्थानी; चुनाव था, जिसमें स्थानी; मुद्दे हावी होते हैं यह सही भी है लेकिन क्या कांग्रेस के पास इस बात का जवाब है कि वो उत्तर प्रदेश में क्यों हार गई? वहां भी कांग्रेस ने स्थानी; मुद्दों के ही तार छेड़े थे। राहुल से लेकर बड़े-बड़े पार्टी सिपहसालारों ने स्थानी; मुद्दों तक की ही बात की। भ्रष्टाचार, महंगाई आदि जैसे मुद्दों पर जब भी पूछने की कोशिश की गई सबने यही कहा कि यह राज्य स्तरीय चुनाव है जहां यहीं के मुद्दे हावी रहेंगे लेकिन प्रदेश में क्या हुआ सबके सामने है। दरअसल इस तरह के बयां राजनीतिक परम्परा के निर्वहन के अलावा कुछ और नहीं। कांग्रेस जिस चुनाव को जीतने के लिए पूर्व में न जाने कितने जतन किए सत्ता में रहते हुए उसने निगम को तीन हिस्सों तक में बांट दिया । लेकिन उसके सारे दाव उल्टे पड गए । आज यह प्रश्न दीगर है कि कांग्रेस हार के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएगी ? क्या भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया इसलिए उसकी हार हुई, या फिर उसने भ्रष्टाचार, महंगाई आदि को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को यह भरोसा दिला दिया कि कांग्रेस ने मान लिया कि वाकई राजधानी में भ्रष्टाचार और मंहगाई है और दिल्ली की जनता इतना तो जानती ही है कि यह मंहगाई और भ्रष्टाचार की जननी कौन है?

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