नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि देश की राजनीति ‘सेक्युलराइटिस’ (धर्मनिरपेक्षता) से पीड़ित है। उन्होंने यहां कहा, ‘‘भारतीय राजनीति में सेक्युलराइटिस की बीमारी फैली हुई है। इंसेफलाइटिस की तरह सेक्युलराइटिस भी अत्यंत खतरनाक है।’’
राजनाथ ने यह टिप्पणी इसलिए की है क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठना जारी है। मोदी पार्टी की चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष हैं और अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में उभरे हैं। मोदी पर 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों में संलिप्तत रहने का आरोप लगाया जाता रहा है।
राजनाथ सिंह ने कांग्रेस महासचिव शकील अहमद पर भी निशाना साधा। अहमद ने 21 जुलाई को कहा था कि आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद हुआ था। राजनानाथ ने कहा, ‘‘वे कहते हैं कि इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) का गठन गुजरात दंगों के बाद हुआ, मैं कांग्रेस के इस नेता (अहमद) से पूछना चाहता हूं कि क्या उनके पास आईएम की जन्मपत्री है। जिन लोगों को आईएम के बारे में ब्योरा चाहिए वे कांग्रेस मुख्यालय जाएं और इस नेता से मुलाकात करें।’’ राजनाथ सिंह ने कहा, ‘‘जैसे कि स्वतंत्र भारत में 2002 से से पहले कोई दंगा ही नहीं हुआ था।’’
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Wednesday, 31 July 2013
Monday, 29 July 2013
मोदी विरोधी चिट्ठी में हस्ताक्षर असली
वाशिंगटन। भाजपा चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष व गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी को अमेरिकी वीजा नहीं देने के लिए राष्ट्रपति बराक ओबामा को
भारतीय सांसदों के पत्र भेजने के विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। दस्तावेजों
की असलियत की जांच करने वाले कैलिफोर्निया के फोरेंसिक दस्तावेज परीक्षक
से प्रमाणित कर दिया है कि पत्रों पर सांसदों के हस्ताक्षर असली हैं और
जैसा दावा किया गया था कि हस्ताक्षर के साथ कट पेस्ट करके जालसाजी की गई
है, वैसा नहीं है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि फोरेंसिक जांच के तरीकों और स्वीकार्य सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हुए मेरी राय यह है कि राज्यसभा के सदस्यों का तीन पृष्ठों का पत्र एक ही बार में तैयार हुआ है और उस पर गिली स्याही से जो हस्ताक्षर हैं वे असली और प्रामाणिक हैं। लोकसभा के सदस्यों के पत्र के मामले में भी यही कहा गया है।
राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों की ओर से क्रमश: गत 26 नवंबर और पांच दिसबंर को ये पत्र भेजे गए थे। ये पत्र ही इस साल 21 जुलाई को ह्वाइट हाउस फिर फैक्स के जरिये भेजे गए। इसकी हस्तलिपि की फोरेंसिक जांच नानेटे एम बार्टो ने कैलिफोर्निया में की। यह जांच मोदी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले संगठन 'कोएलिशन अगेंस्ट जेनोसाइड' की आग्रह पर तब की गई जब कुछ भारतीय सांसदों (जिनमें माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के एमपी अच्युतन और द्रमुक के केपी रामालिंगम भी थे) ने ओबामा को भेजे पत्र पर अपना हस्ताक्षर होने से इन्कार किया। सीएजी में अमेरिका के करीब 40 भारतीय अमेरिकी संगठन शामिल हैं।
यह संगठन मोदी को अमेरिकी वीजा नहीं देने के लिए अभियान चला रहा है। जब इस फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट पर सांसद अच्युतन की प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा कि उन्हे याद नहीं है कि उन्होंने इस तरह के किसी पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
रामालिंगम ने कहा कि यह विशेषाधिकार का मामला है और यह राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को दिया जाएगा। मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैंने पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया। येचुरी ने कहा था कि उनके हस्ताक्षर को कट पेस्ट किया है, उनकी इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया हासिल नहीं हो सकी।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि फोरेंसिक जांच के तरीकों और स्वीकार्य सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हुए मेरी राय यह है कि राज्यसभा के सदस्यों का तीन पृष्ठों का पत्र एक ही बार में तैयार हुआ है और उस पर गिली स्याही से जो हस्ताक्षर हैं वे असली और प्रामाणिक हैं। लोकसभा के सदस्यों के पत्र के मामले में भी यही कहा गया है।
राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों की ओर से क्रमश: गत 26 नवंबर और पांच दिसबंर को ये पत्र भेजे गए थे। ये पत्र ही इस साल 21 जुलाई को ह्वाइट हाउस फिर फैक्स के जरिये भेजे गए। इसकी हस्तलिपि की फोरेंसिक जांच नानेटे एम बार्टो ने कैलिफोर्निया में की। यह जांच मोदी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले संगठन 'कोएलिशन अगेंस्ट जेनोसाइड' की आग्रह पर तब की गई जब कुछ भारतीय सांसदों (जिनमें माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के एमपी अच्युतन और द्रमुक के केपी रामालिंगम भी थे) ने ओबामा को भेजे पत्र पर अपना हस्ताक्षर होने से इन्कार किया। सीएजी में अमेरिका के करीब 40 भारतीय अमेरिकी संगठन शामिल हैं।
यह संगठन मोदी को अमेरिकी वीजा नहीं देने के लिए अभियान चला रहा है। जब इस फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट पर सांसद अच्युतन की प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा कि उन्हे याद नहीं है कि उन्होंने इस तरह के किसी पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
रामालिंगम ने कहा कि यह विशेषाधिकार का मामला है और यह राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को दिया जाएगा। मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैंने पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया। येचुरी ने कहा था कि उनके हस्ताक्षर को कट पेस्ट किया है, उनकी इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया हासिल नहीं हो सकी।
Friday, 26 April 2013
क्या गुल खिलाएगी बाबा रामदेव-मोदी की जोड़ी
देवभूमि में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आमद की आहट ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मोदी की यह यात्रा यूं तो गैरराजनीतिक है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने भी निकलकर सामने आ रहे हैं। खासकर, राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर चुके बाबा के मोदी प्रेम से भाजपाई जरूर राहत महसूस कर रहे होंगे। मोदी के माध्यम से ही सही, एक ऐसे राजनीतिक दल का गठन रुक सकेगा, जो भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।
कांग्रेस के साथ छत्तीस का आंकड़ा बनने से पहले, यानी मई-जून 2011 तक बाबा रामदेव की पतंजलि योगपीठ में भाजपा ही नहीं, सभी सियासी पार्टियों के बड़े नेताओं का आना-जाना निहायत सामान्य सी बात हुआ करती थी, लेकिन काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा की मुहिम के बाद परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई। पिछले दो सालों में संभवतया राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले राजनेताओं में मोदी ही ऐसे अकेले राजनेता हैं, जिनका कार्यक्रम बाबा की योगपीठ में बना है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 2014 के लोकसभा आम चुनाव इसका मुख्य कारण हैं।
मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक के बाद भाजपा के अंदरूनी समीकरण चाहे जैसी भी शक्ल लें, लेकिन इतना तो तय है कि मोदी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए अहम रोल में रहेंगे। मोदी इस भूमिका के लिए सुविचारित रणनीति के तहत अपने कदम बढ़ा रहे हैं। समाज के अलग-अलग तबकों के बीच जिस तरह उन्होंने अपनी बात अब तक रखी है, उससे इसकी पुष्टि भी होती है। बाबा रामदेव के कार्यक्रम में संत समाज से रूबरू होने के लिए मोदी के हरिद्वार आने को भी इसी रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है। वैसे भी भाजपा में अग्रिम पंक्ति में अपनी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए मोदी के लिए यह जरूरी है कि संत समाज का आशीर्वाद भी उनके पास हो।
मोदी की बाबा से जुगलबंदी के बाद अब इस बात की संभावना काफी कम मानी जा रही है कि बाबा रामदेव आगामी लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल का गठन करें। दरअसल, बाबा अक्सर राजनीतिक दल बनाने की बात तो करते हैं, मगर साथ ही भाजपा में नरेंद्र मोदी की पैरवी भी खुलकर करते रहे हैं। इससे समझा जा रहा है कि अगर मोदी को पार्टी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने को तैयार हो जाती है तो शायद बाबा फिलहाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को विराम दे दें। मोदी की हरिद्वार यात्रा इस लिहाज से भी खासी अहम साबित हो सकती है।
Saturday, 21 April 2012
भाजपा की जीत या कांग्रेस की हार : अजय पाण्डेय
हालांकि कांग्रेस इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती कि दिल्ली नगर निगम चुनाव, विधानसभा चुनाव का सेमी फाइनल है, वो इस बात को सिरे से खारिज कर रही है कि इन चुनावों के परिणाम विधानसभा चुनावों पर असर डालेंगे । कांग्रेसी नेता इसे नगर निगम चुनाव के रूप में ही देखने की नसीहत दे रहे और चुनावी सेमी पफाइनल को मीडिया की उपज बता रहे हैं। अब कांग्रेस चाहे इसे मीडिया की उपज बताये फिर चुनाव बाद मीडिया में अक्सर दी जाने वाली चुनावी दलील दे, यह परिणाम दिल्ली की बदलती हुई राजनीतिक परिपाटी को जरूर दर्शाता है। किसी भी राज्; में जब स्थानी; चुनाव होते हैं तो सबसे ज्यादा उस राज्य की सत्ताधारी पार्टी और सरकार की साख दाव पर लगी रहती है। ;हां भी वैसा ही हुआ चुनाव की कमान प्रदेश में सत्तानशीं शीला दीक्षित को सौंप दी गई। उन्होंने दमखम से पार्टी का प्रचार प्रसार तो किया लेकिन उस प्रचार में इतना भी दम नहीं था जिससे वो नगर निगम के तीनों हिस्सों में से किसी एक में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके। बहरहाल हर चुनाव के बाद हारी हुई पार्टी एक सामान्य और पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए चुनावी मंथन जरूर करती है जैसा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गाँधी ने किया था। लेकिन हकीकत यह है कि कोई भी पार्टी इन चुनावी मंथनों से सबक नहीं लेती। वस्तुतः दिल्ली की जो स्थिति है वो केन्द सरकार बनाम राज्य सरकार बनाम स्थानी; निकायों की त्रिगुट ध्रुवों में बंटी हुई है। कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते समय यह भूल गई कि यह भ्रष्टाचार उसी की कोख से पैदा होकर, उसी के आगोश में पोषित हुआ था, ,ऐसे में कांग्रेस द्वारा अपने ही राज्य में भ्रष्टाचार की बात करना उसकी राजनीतिक परिपक्वता पर सवालिया निशान लगाता है। कांग्रेस के कुछ नेता कहते हैं यह स्थानी; चुनाव था, जिसमें स्थानी; मुद्दे हावी होते हैं यह सही भी है लेकिन क्या कांग्रेस के पास इस बात का जवाब है कि वो उत्तर प्रदेश में क्यों हार गई? वहां भी कांग्रेस ने स्थानी; मुद्दों के ही तार छेड़े थे। राहुल से लेकर बड़े-बड़े पार्टी सिपहसालारों ने स्थानी; मुद्दों तक की ही बात की। भ्रष्टाचार, महंगाई आदि जैसे मुद्दों पर जब भी पूछने की कोशिश की गई सबने यही कहा कि यह राज्य स्तरीय चुनाव है जहां यहीं के मुद्दे हावी रहेंगे लेकिन प्रदेश में क्या हुआ सबके सामने है। दरअसल इस तरह के बयां राजनीतिक परम्परा के निर्वहन के अलावा कुछ और नहीं। कांग्रेस जिस चुनाव को जीतने के लिए पूर्व में न जाने कितने जतन किए सत्ता में रहते हुए उसने निगम को तीन हिस्सों तक में बांट दिया । लेकिन उसके सारे दाव उल्टे पड गए । आज यह प्रश्न दीगर है कि कांग्रेस हार के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएगी ? क्या भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया इसलिए उसकी हार हुई, या फिर उसने भ्रष्टाचार, महंगाई आदि को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को यह भरोसा दिला दिया कि कांग्रेस ने मान लिया कि वाकई राजधानी में भ्रष्टाचार और मंहगाई है और दिल्ली की जनता इतना तो जानती ही है कि यह मंहगाई और भ्रष्टाचार की जननी कौन है?
Tuesday, 17 April 2012
दिल्ली: 15 साल में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार, तीनों निगमों में भाजपा की बादशाहत

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