Saturday, 11 August 2012

कहना तो आता है... [ साहित्य दर्पण ]

पुस्तक समीक्षा

अजय पाण्डेय
समाज सजग कवि के रूप मे चर्चित पवन करण के काव्य संकलन ‘कहना नहीं आता’ की कविताएं विचारशीलता, वैविध्य, संवेदनशीलता, संवाद धर्मिता , समरसता तथा समाजिक सरोकार की वजह से अपनी ओर आकर्षित  करती है। इस संकलन की सभी कविताएं आधुनिक  समाज, समयचक्र और कालान्तर में  होने वाली अनुभूतियों  की परिणति हैं जो यह दर्शाती है कि कविता तो कहीं से भी निकाली जा सकती है। दरअसल इसकी (संग्रह)  सभी कविताएं समकालीन समाज में अपने होने का एहसास कराती है। वैसे पिछले कई सालों में यह देखा गया है कि हिन्दी काव्य एक संक्रमण के दौर से गुजरा है जो कई परिवर्तनों का साक्षी रहा है। इन परिस्थितियों में जो नई कवि पीढ़ी हुई है उसके सामने आत्माभिव्यक्ति सबसे बड़ी चुनौती साबित हुई और इस चुनौती में पवन करण खड़े दिखाई देते हैं। दरअसल पवन करण अपनी आत्माभिव्यक्ति के लिए जिस समाजिकता और प्रायोगिक धरा को अपनाते हैं उससे इनकी कविताएं संवदेनशील और ईमानदार बन जाती हैं। उसमें एक सामाजिक निर्दोषता आ जाती है। जहां तक इस संकलन में शामिल कविताओं की शिल्प और संरचना की बात है तो ये कविताएं समाज संस्कृति, आधुनिकता  की परिपाटी, मानवीय आयामों समेत सोच और कल्पना के वैविध्य संसार को समटे हुए है। इनमें से ‘मोबाइल’ शीर्षक से पांच, ‘गरीब देश’ शीर्षक से दो, ‘मिलना’ शीर्षक से पांच, ‘अपने दोस्तों के बीच ईश्वर’ शीर्षक से पांच, और ‘मैं स्त्री  होना चाहता हूं  शीर्षक से दो कविताएं हैं। इसके अलावा इनमें से ‘इन्हें चाव से पढ़ें’ एक ऐसी कविता है जो शौचालयी भाषा को पोषित करती है। ‘सूर्या सावित्री , ‘आरक्षण गली अति सांकरी’, ‘चकबारा’, ‘सवारा’, ‘जयश्री राम’ ये कुछ ऐसी कविताएं हैं जो रूढ़िवादी समाज की सीमित सोच पर कुठाराघात है। हां बीच-बीच में ‘झूठ’, ‘रक्त’, ‘कल’, ‘कहना’, ‘माचिस’ आदि कई कविताएं जो पृथक लेकिन सार्थक संदेश छोड़ती हैं। कवि ने इस काव्य संग्रह में सामाजिक परिवेश और आम जीवन में होने वाली घटनाओं के इतने दृष्टिकोणों का समग्र रूप से उठाया है कि शायद ही उसका अंशमात्रा पहलू छूटा हो। इन कविताओं की सबसे अच्छी बात यह है कि यह मनुष्य, समाज, मानवीय कार्यशैली की सकारात्मक और नकरात्मक पक्ष दोनों पर प्रकाश डालती है। कवि ने कुछ कविताओं में समाज के कुरूप चेहरे पर से पर्दा उठाने का प्रयास भी किया है। ‘बल्ब’, ‘उस फोटोग्राफर का नाम पता करो’ से समाज की एक यथार्थता सामने आती है। पवन करण की कविताएं ‘सवारा’ और ‘भाई’ के माध्यम से रूढ़िवादी समाज और उसकी कौटिल्य परम्परा पर चोट करती नजर आती है। हां इसमें कवि ने ‘फोकटिया’ के माध्यम से दूर गांव में रहने वाले मुफ्त  की कमाई पर गुजर-बसर करने वाले लोगों पर प्रकाश डाला है। पवन करण की यह काव्य संग्रह ‘कहना नहीं आता’ एक समाज-सजग होने के साथ ही सामाजिक रूप से संवेदनशील और मानस पटल पर एक व्याकुलता की दुनिया है। इसमें लगभग सभी कविताएं कवि और आम जनमानस के जीवन में होने वाली दैनंदिनी घटनाओं का काव्यंकित रूप है। इसमें संवेदना, अनुभूति, और विचार की पराकाष्ठा है जो किसी भी शैली से पृथक एक अलग ही काव्यत्व-निर्वाह को प्राप्त करती है। अधिकतर कविताओं की संवेदनात्मक आख्यान उसे प्राकृतिक भावावेग से लिप्त कर काव्यात्मक-निर्वाह से ऐसे परिपूर्ण करती है कि लम्बी कविताएं भी एक प्रवाह प्राप्त करती है। जहां तक समकालीन कविताओं से तुलना की बात है तो जब उन कविताओं को परिदृश्य में रखकर पवन करण की कविताओं का अध्ययन करते हैं तो कुछ वैशिष्ट्य विचार जरूर दृष्टिगोचर होते हैं। हालांकि कवि ने इसे सामाजिकता से ओत-प्रोत करके बाजारोन्मुख शिल्प देने का प्रयास किया है। लेकिन कुछ कविताओं में अबूझ शिल्प भी नजर आते हैं जो सामाजिक कविता के दृष्टिकोण से निराशा पैदा करते हैं। इसके पीछे कारण है कि इस शैली में यह देखा जाता है कि आम जनमानस का इनसे कोई सरोकार नहीं होता। अगर इसे बाजारोन्मुखी भाव से परे देखें तो पवन करण की कविताएं बौद्धिकता  और संवेदनशीलता के साथ-साथ सामाजिक सजगता का माहौल तैयार करती है। कुछ कविताएं ऐसी भी हैं जो अपनी विचाराधरात्मक आयामों की वजह से भारतीय समाज की रूढ़िवादिता को निर्मिमेष भाव से प्रकट करती है। लेकिन इसी बीच कुछ कविताएं आधुनिकता  का आवरण ओढ़े कवि की समझदारी और प्रयोगिक्धार्मिता  को एक व्यापक आयाम दे देते हैं। इन कविताओं से पाठकवर्ग को एक संवाद करने का माध्यम मिलता है और एक ऐसी आकांक्षा पनपती है जिससे उसकी चाह ऐसे मोड़ पर पहुंच जाती है जहां से वह अपने आप से साक्षात्कार कर सके। उनकी कविताएं कलात्मक और रचनात्मक दृष्टिकोण से बिल्कुल भावशून्य हैं और वैसे देखा जाए तो कवि ने इसकी लेशमात्र कोशिश भी नहीं की है। लेकिन यह कहना सत्य है कि माध्यम के प्राकृतिक और अकृत्रिम रचाव ने ही कविता को संवेदना की पराकाष्ठा पर स्थापित किया है। इसमें एक बात और जो संग्रह की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है वो यह कि समाज, सभ्यता-संस्कृति, यात्रा, आधुनिक  परिवेश आदि का हर विक्षोभ कविता का शक्ल धर  लेता है।
 
कहना नहीं आताः पवन करण
वाणी प्रकाशन, 4695, 21-ए, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्यः 150रु. 

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Friday, 10 August 2012

बहुजन आत्मा की खोज में एक कदम [ साहित्य दर्पण ]

फारवर्ड प्रेस (पत्रिका)
अजय पाण्डेय
आज बहुजन साहित्य और पत्रिका पढ़ते हुए यह जिज्ञासा प्रबल हो रही है कि ऐसे साहित्य की जरूरत क्यों पड़ी क्योंकि साहित्य का तो कोई दायरा होता ही नहीं है, उसमें बहुजन, ब्राह्मणवाद या द्विजता जैसी कोई बात नहीं होती है। लेकिन पत्रिका को पढ़ने के बाद जिज्ञासा पर विराम लगा। और स्पष्ट हुआ कि जिस समाज में ब्राह्मणवादी और द्विज साहित्य की मौजूदगी को ज्यादा तवज्जो दिया गया है उसमें इस बहुजन साहित्य की आवश्यकता है।  दरअसल बहुजन साहित्य को लिखने का यह मंतव्य नहीं है कि पूरे हिन्दी साहित्य को इस नजरिये से देखा जाए।  बल्कि यह इस बात को इंगित करता है कि समाज समस्त साहित्य के मूल्यों को अंगीकार करे। हालांकि पत्रिका के संपादकीय लेख में जिस कहानी का जिक्र कर समाज के ताने-बाने को दर्शाने की कोशिश की गई है उससे तो स्पष्ट है कि समाज में जो दलित, आदिवासी या पिफर मुसलमानों के नाम पर जो भ्रांतियां पफैली हुई हैं वो दरअसल सामाजिक असंतुलन का परिणाम है। इसके अलावा जिस विषय वस्तु पर ज्यादा जोर दिया गया है वो है ‘बहुजन साहित्य’। इस खंड में बहुजन साहित्य समय की मांग को लेकर इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें ओबीसी साहित्य धरा, दलित साहित्य धरा और आदिवासी साहित्य भी समावेशित हो गया है। इसमें इस बात को प्रखरता से उभारा गया है कि बहुजन साहित्य अस्मिता और भूख से लड़ने का हथियार मुहैया कराती है और स्पष्ट करती है कि जो लड़ाई भूख और अस्मिता के लिए लड़ी जाती है वही अगर साहित्य के लिए की जाए तो उसे ‘बहुजन साहित्य’ कहते हैं। इसके अलावा जहां तक बहुजन आलोचना की बात है तो इतना तो स्पष्ट है कि किसी साहित्य की आलोचना उसकी सम्यक विवेचन, निरीक्षण तथा सूक्ष्म अध्ययन करती है। इसमें न सिर्फ कृति के बाहरी आवरण का परीक्षण होता है बल्कि साहित्यकार की भी अंतःचेतना की परख होती है। इसके अलावा आलोचना की मार्क्सवादी शैली का अनुपयुक्त करार देना भी इस साहित्य की सार्थकता पर जोर देता है क्योंकि भारत में वर्ग-संघर्ष से ज्यादा जाति-संघर्ष देखा जाता है ऐसे में यह उचित है कि मार्क्सवादी आलोचना भारत में बेईमानी है। पत्रिका के अगले खंड में उन साहित्यकारों और लेखकों का जिक्र है जो समय और समाज के जातीय पदसोपान की अंध्ेरी स्याह में गुमनाम हो गए। पत्रिका ऐसे लोगों को पुनर्जीवित करती है जिन्हें सवर्ण साहित्य और साहित्यकारों ने नेपथ्य में भेज दिया था। चाहे वो ज्योतिबा पुफले, ताराबाई शिंदे, अनूपलाल मंडल या पिफर इन जैसे कितने ही साहित्यकार जिन्हें सवर्ण साहित्य ने कभी अंगीकार नहीं किया और इनकी रचनाओं को पल्लवित तक नहीं होने दिया। आज ज्योतिबा पफुले को आधुनिक  बहुजन साहित्य का अग्रदूत माना जाता है, अनूपलाल मंडल की साहित्य उस काल की अमूल्य धरोहर  हो सकती थी जब हमारा साहित्य गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा आजादी के ख्वाब बुन रहा था और क्रांतिकारी लेखिका ताराबाई शिंदे उन्नीसवीं सदी उन साहित्यकारों में से एक थी जिन्होंने सामाजिक जटिलताओं पर प्रहार किया था। बावजूद इसके इन जैसे साहित्यकारों ने ख्याति तो दूर समाज में पहचान तक नहीं बना सके।  ‘बहुजन साहित्य की अवधरणा और आदिवासी’ खंड में दलित साहित्य के साथ-साथ आदिवासी साहित्य को स्पष्ट करना भी पत्रिका की विशेषता की एक कड़ी है। दरअसल इन दोनों साहित्यों में मामूली पफर्क है। आदिवासी साहित्य का अध्ययन जहां जंगलों और जमीनों के संघर्ष के साथ होता है वहीं दलित साहित्य के अध्ययन के केन्द्र में दलित-मुक्ति और जातीय संघर्ष है। इस खंड में आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्राता के प्रश्न का उत्तर बहुजन साहित्य में ढूंढना  भी इस साहित्य की यथार्थता पर प्रकाश डालता है। इन सब के बीच पत्रिका में जो पथप्रदर्शक और सच्चाई से रूबरू कराती कवितायें हैं वो वास्तव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। कुछ कविताओं में दलित आत्मा की खोज भी सामाजिक वैमनस्य का परिणाम है। 

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Tuesday, 7 August 2012

संसद की कार्यवाही में आज हिस्सा लेंगे सचिन और रेखा

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और फिल्म अभिनेत्री रेखा बुधवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में हिस्सा लेंगे। सचिन और रेखा राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं। मंगलवार को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट डालने के बाद तेंदुलकर ने पत्रकारों से कहा कि मैं बुधवार को संसद में मौजूद रहूंगा, लेकिन मैं पूरे सत्र के दौरान सदन में मौजूद रहने के बारे में आश्वस्त नहीं हूं। मानसून सत्र में मौजूद रहने के बारे में पूछे जाने पर रेखा ने भी हां में सिर हिलाया। इसके पहले तेंदुलकर और रेखा ने उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया। संसदीय राज्य मंत्री राजीव शुक्ला के साथ रेखा और तेंदुलकर संसद भवन पहुंचे। यह पूछे जाने पर कि तेंदुलकर कितने दिन तक सदन में मौजूद रहेंगे, शुक्ला ने कहा कि सचिन क्रिकेटर हैं और उनका सांसद सचिन से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने यह पहले ही साफ कर दिया था कि क्रिकेट उनकी पहली प्राथमिकता होगी। वह अपनी संसदीय जिम्मेदारियों से भलीभांति अवगत हैं और समय मिलने पर वह सदन में मौजूद रहेंगे। सचिन और रेखा को इस साल मई में संसद के ऊपर सदन के लिए नामित किया गया था।

Tuesday, 17 July 2012

सलमान से 'गुपचुप' क्‍यों मिले? पूछने पर भड़के अन्‍ना

नई दिल्‍ली. जनलोकपाल की मांग को लेकर सरकार को परेशानी में डालने वाले समाजसेवी अन्‍ना हजारे की केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद से हुई गुपचुप मुलाकात पर सवाल उठने लगे हैं। बताया जा रहा है कि अन्‍ना और सलमान की यह मुलाकात बीते 23 को हुई थी। पुणे-नासिक हाईवे से 90 किलोमीटर दूर फिरौदिया नाम के गेस्ट हाउस में हुई इस मुलाकात के बारे में अब अन्ना कुछ भी बोलना नहीं चाह रहे हैं। पुणे में पत्रकारों ने अन्‍ना से जब इस मुलाकात के बारे में सवाल किया तो वह कुछ नहीं बोले। हालांकि उन्‍होंने इससे इनकार भी नहीं किया कि उनकी सलमान खुर्शीद से मीटिंग हुई थी। उन्‍होंने कहा कि समय आने पर सब कुछ बता देंगे। जिस रिपोर्टर ने अन्‍ना ने यह सवाल किया उसपर ही अन्‍ना भड़क गए। उन्‍होंने पूछा, 'आपकी इसमें क्‍यों दिलचस्‍पी है? अन्ना को जब पारदर्शिता का हवाला दिया गया, तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि 'पारदर्शिता के चक्कर में जेल जाना पड़ेगा।' गौरतलब है कि इस प्रेस कांफ्रेंस में अन्‍ना के साथ बाबा रामदेव भी थे। खुर्शीद ने इस सवाल के जवाब में संकेत दिया कि वो अन्‍ना से मिले हैं। उन्‍होंने कहा, 'मैं अच्‍छे लोगों से मिलता रहता हूं।' हालांकि उन्‍होंने यह नहीं बताया कि दोनों के बीच क्‍या बात हुई? वहीं कांग्रेस प्रवक्‍ता मनीष तिवारी इस सवाल के जवाब से पल्‍ला झाड़ते दिखे। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री अपनी पत्‍नी लुई खुर्शीद के साथ अन्‍ना से मिलने नासिक पहुंचे। केंद्रीय मंत्री ने अन्‍ना से अनुरोध किया कि टीम अन्‍ना की तरफ से जारी की गई भ्रष्‍ट मंत्रियों की लिस्‍ट में से उनका नाम हटा लिया जाए। ऐसी खबर है कि अन्ना और उनके ड्राइवर ही इस मुलाकात में आए थे इसलिए इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अन्ना इस मीटिंग में अकेले ही आए और उनके सहयोगियों को इसकी जानकारी नहीं थी। अन्ना के बेहद करीबी माने जाने वाले और अन्ना की सभी गतिविधियों की जानकारी देते रहने वाले सुरेश पठारे ने भी इस बाबत कुछ नहीं बताया है। अन्ना हजारे की खुर्शीद की इस गुपचुप मुलाकात पर सवाल उठने लाजमी हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले टीम अन्‍ना ने बीते 26 मई को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित 15 मंत्रियों के भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त होने का आरोप लगाया था। टीम अन्‍ना ने भ्रष्‍टाचार के आरोपों के सबूत के तौर पर दस्‍तावेजों के साथ एक चिट्ठी पीएम को लिखी थी। इसमें हजारे के अलावा अरविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, किरण बेदी और मनीष सिसौदिया के दस्‍तखत थे।

Tuesday, 3 July 2012

आईसीयू में है रेलवेः प्रबोध पान्डा

भारतीय रेलवे जिसे हमारे देश में सर्वाधिक रोजगार देने वाला उपक्रम माना जाता है, लेकिन पिछले काफी दिनों से वह चर्चा में रही है। चाहे वो रेलमंत्री की स्थायित्व और जिम्मेदारियों की बात हो, नई योजनाओं का मामला हो, साफ-सफाई का मामला हो, अवैध् वैण्डरों का मामला हो या फिर तत्काल टिकटों की खरीद-फरोख्त में दलालों की बढ़ती सक्रियता हो सबने रेलवे की साख को गिराया ही है। रेलवे की इन तमाम समस्याओं को लेकर अभी हाल ही में रेलवे के सलाहकार समिति के सदस्य और मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल) से सीपीआई (एम) के लोकसभा सांसद *प्रबोध पान्डा* की मुलाकात हमारे संवाददाता *अजय पाण्डेय* से हुई। पेश है बातचीत के मुख्य अंश-

वर्तमान में रेलवे कई बिन्दुओं पर घिरी हुई दिखाई दे रही है जिसमें सफाई का मुद्दा सबसे अहम है। आप इसे कैसे देखते हैं?
आज रेलवे की जो हालत है वो अब तक के रेल इतिहास के सबसे बुरे दौर में है। इसका मुख्य कारण है कि यहां न तो कोई नियम कानून है और न ही एक समुचित नौकरशाही। जिसकी वजह से किसी भी प्रकार की योजनाओं को मूर्तरूप नहीं दिया जा रहा। साफ-सफाई इसी उपेक्षित नौकरशाही का परिणाम है। आप ऐसा कह सकते हैं कि रेलवे में पूरी तरह अराजकता व्याप्त है जहां जिसे जो समझ में आ रहा है कर रहा है। किसी भी तरह की कोई सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है।

वर्तमान में रेलवे कौन-कौन सी नई परियोजनाओं पर काम कर रही हैं?
आज रेलवे के पास कोई नई योजनायें नहीं हैं जितनी भी योजनाएं चल रही हैं वो सभी लालू यादव के समय की हैं। अभी आप देखिए लालू यादव के बाद ममता बनर्जी रेलमंत्री बनी उसके बाद दिनेश त्रिवेदी अब मुकुल राय। अब कोई भी मंत्री ठीक से एक साल काम नहीं कर पाता है तो आप किस तरह की योजनाओं और विकास की बात करते हैं। किसी भी योजना और विकास के लिए टिक कर काम करना जरूरी होता है लेकिन यहां तो मंत्रालय ही आपाधापी कर कर रहा है।

लालू यादव, ममता बनर्जी, दिनेश त्रिवेदी और अब मुकुल राय इनमें से सबसे बेहतर * *रेलमंत्री किसे मानते हैं?
देखिए, किसी भी मंत्री की तुलना के लिए उसके पूरे कार्यकाल का कामकाज देखना पड़ता है। लालू यादव ने अपना कार्यकाल तो पूरा कर लिया, लेकिन ममता बनर्जी, दिनेश त्रिवेदी और मुकुल राय इनमें से किसी ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। ऐसे में इनकी तुलना थोड़ी मुश्किल है। लेकिन यहां स्पष्ट है कि लालू यादव के बाद रेलवे काफी घाटे में चल रही है। लालू यादव ने अपने सभी बजटों में बचत लाभ दिखाया था। लेकिन उनके बाद अभी तक यह लाभ देखने को नहीं मिला।

पिछले रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा था कि रेलवे आईसीयू में है, कितना सहमत हैं?
बिल्कुल सही कहा था कि रेलवे आईसीयू में है। लेकिन किसी को क्या? ममता बनर्जी कहती हैं कि वो विजन 2020 देख रही हैं लेकिन अब वे ही बताएं कि विजन 2020 तीन साल में तीन रेलमंत्री बदलकर हो कैसे पूरा हो सकता है? *

इस बात में कितनी सच्चाई है कि योजना आयोग ने रेलवे की आर्थिक नीतियों को नियोजित करने की बात कही थी और अगर यह सही है तो इस मामले में बात कहा तक पहुंची?
हां, ये सही है कि योजना आयोग ने रेलवे के सामने ऐसा प्रस्ताव रखा था, लेकिन उसने यह भी शर्त रखी थी कि बजट कम से कम 300 करोड़ का हो। लेकिन रेलवे मंत्रालय ने इस बजट को 300 करोड़ तक होने ही नहीं दिया। अब इस बात से रेलवे के मंतव्य को जाना सकता है। आज रेलवे में जो कुछ भी चल रहा है वो अराजकता का ही परिणाम है जो किसी भी योजना को क्रियान्वित होने से रोक रहा है।

आपके अनुसार रेलवे को आईसीयू से बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?
देखिए, रेलवे एक सार्वजनिक उपयोगिता का क्षेत्र है जो कई मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है। रेलवे की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हुई पड़ी है। इसमें सभी पार्टियों को मिलकर काम करना चाहिए। उन मुद्दों पर न सिर्फ बहस की जरूरत है बल्कि उन बातों के सामाधन ढूंढने की भी जरूरत है जिनकी वजह से रेलवे आज भी आईसीयू में है।

संवाददाता- अजय पाण्डेय 
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Sunday, 1 July 2012

सानिया और कंट्रोवर्सी, हमेशा रहा है चोली-दामन का साथ!

टेनिस में तेज सर्विस की कोशिश में अक्सर डबल फॉल्ट होता है। सानिया भी जितनी तेजी से आगे बढ़ीं, उतने ही विवाद भी उनके साथ लगे रहे। अब उन्होंने दो खिलाडिय़ों के अहं के टकराव में मोहरा बनाने की बात कहकर नई चर्चा छेड़ दी है। बात सानिया के बचपन के दिनों की है, जब वे महज छह साल की थीं। सानिया के पिता इमरान मिर्जा उन्हें हैदराबाद में एक कोच के पास लेकर गए। लेकिन कोच ने यह कहकर सानिया को कोचिंग देने से मना कर दिया कि अभी वे बहुत छोटी हैं। यह उम्र गुड्डे-गुडिय़ों जैसे खेल खेलने की है, टेनिस का प्रशिक्षण लेने की नहीं। लेकिन जब कोच ने उन्हें रैकेट पकड़कर फॉरहैंड शॉट लगाते देखा तो वे सानिया के टैलेंट के आगे नतमस्तक हो गए। उन्होंने तत्काल इमरान मिर्जा को बुलाकर कहा? इतनी कम उम्र में इतनी ज्यादा टैलेंटेड खिलाड़ी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। यह तो फ्यूचर स्टार है। तो यह सानिया की शुरुआत थी। हर सफल व्यक्ति के साथ जिस तरह विवाद जुड़ जाते हैं, उसी तरह सानिया भी विवादों से मुक्त नहीं रही हैं। वे टेनिस कोर्ट से ज्यादा विज्ञापनों और अफेयरों के चलते अखबारों की सुर्खियों में नजर आईं, लेकिन कभी हार न मानने की जिजीविषा के दम पर उन्होंने तमाम बाधाओं से पार पा लिया। भूपति के पिता से ली कोचिंग सानिया ने छह साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू किया था। उन्होंने अपने पिता और स्पोट्र्स जर्नलिस्ट इमरान मिर्जा से खेल की बारीकियां सीखीं। पेशेवर प्रशिक्षण महेश भूपति के पिता सीके भूपति से 12 साल की उम्र से लेना शुरू किया। इसके लिए वे पहले सिकंदराबाद की टेनिस एकेडमी में गईं, फिर अमेरिका में भी कोचिंग ली। कॉर्पोरेट घरानों का मिला साथ टेनिस एक महंगा खेल माना जाता है और पेशेवर कोचिंग में हर महीने लाखों का खर्च आता है। सानिया ने जब पेशेवर कोचिंग लेना शुरू किया तो उनके पिता के लिए इसका खर्च उठाना मुश्किल होने लगा। हारकर उन्होंने कॉर्पोरेट जगत से मदद की अपील की। सानिया की किस्मत अच्छी थी कि एडिडास तथा जीवीके इंडस्ट्रीज उनके प्रायोजक बनने को तैयार हो गए। शादी के किस्से 2009 में बचपन के दोस्त सोहराब मिर्जा के साथ उनकी मंगनी हुई, लेकिन जल्द ही टूट गई। फिर एक करोड़पति व्यवसायी फैजान उदयावर के साथ अफेयर की खबरें आईं, लेकिन छह महीने बाद ही पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक के साथ उनके रिश्ते सार्वजनिक हो गए। अप्रैल 2010 में दोनों ने शादी कर ली। फिर एक महिला ने दावा किया कि शोएब के साथ उसकी शादी हो चुकी है और शोएब व सानिया की शादी वैध नहीं हो सकती। अंतत: शोएब को महिला को तलाक देना पड़ा। कुरान पढऩा नहीं भूलतीं अंतरराष्ट्रीय टेनिस मैचों में व्यस्तताओं के बावजूद सानिया हर दिन कुरान की आयतें पढ़ती हैं और नियमित नमाज भी अदा करती हैं। खाली समय में उन्हें इंटरनेट पर सर्फिंग करना तथा फिल्में देखना पसंद है। इसके साथ ही वे हिंदी फिल्मों के गानें भी खूब सुनती हैं। बिरयानी है पसंद खाने में उनकी पसंदीदा डिश बिरयानी है, लेकिन केला और सेब जैसे फल उन्हें नहीं भाते। फुर्सत के समय जींस-शर्ट या फिर सलवार-कुर्ता पहनना पसंद करती हैं। खेल में उन्हें टेनिस के अलावा क्रिकेट देखना अच्छा लगता है। विवादों के कोर्ट में... तिरंगे का अपमान वर्ष 2008 में होपमैन कप के दौरान एक तस्वीर में सानिया के पैरों के सामने भारत का तिरंगा रखा दिखाया गया। इसे तिरंगे का अपमान समझा गया। सेक्स पर विचार नवंबर 2005 में सानिया ने सेफ सेक्स को लेकर कॉन्फ्रेंस में विचार रखे तो विवाद हुआ। बाद में उन्हें स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वे शादी से पहले सेक्स के खिलाफ हैं। टेनिस कोर्ट पर छोटे कपड़े 2005 में टेनिस कोर्ट पर सानिया की शॉर्ट ड्रेस के चलते कट्टरपंथी ताकतों ने जमकर आलोचना की। इसे इस्लाम विरोधी बताकर उनके खिलाफ फतवे भी जारी किए गए। 


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विधायक के साथ दुर्व्यवहार मामले में पांच गिरफ्तार

कांग्रेस विधायक रूमी नाथ और उनके दूसरे पति पर कथित तौर पर हमला करने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस आयुक्त प्रदीप पुजारी ने बताया की महिला विधायक पर हमला मामले में पांच संदिग्ध व्यक्तियों को यहां पर गिरफ्तार किया गया। नाथ और उनके पति को शुक्रवार को लोगों के एक गुट ने पिटाई कर घायल कर दिया था। यह गुट विधायक द्वारा अपने पहले पति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी किए जाने को लेकर नाराज था। विधायक और उनके पति को गुवाहाटी पहुंचाया गया और उपचार कराया गया। उनकी हालत खतरे से बाहर बतायी जा रही है। पुजारी ने बताया कि कांग्रेस की विधायक ने एक एफआईआर दर्ज कराई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भीड़ ने राजनीतिक इरादों से उनपर हमला किया। इस मामले की जांच की जा रही है। नाथ ने अपने उपर हमले को राजनीतिक साजिश करार देते हुए कहा, मुक्षे आंतरिक और बाहरी तौर पर कुछ चोट पहुंची है। आज से इलाज करा रही हूं और मुझे लगता है कि जल्द ही ठीक हो जाऊंगी 




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