Thursday 1 August 2013

गुजरात में मोदी के खिलाफ पनप रहा है \'मौन विद्रोह\'

नई दिल्ली।। गुजरात में मॉनसून आगमन की घोषणा और मूसलाधार बारिश, प्रदेश के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन की चेतावनी भी है। बीजेपी जिस शख्स में प्रधानमंत्री की मजबूत दावेदारी देख रही है, प्रदेश में विकास की उसकी 2 छवियां हैं। जुलाई के पहले भारी बारिश के वे दिन और मोटरसाइकल पर सवार हजारों की संख्या में गांव वाले नरेंद्र मोदी की विकास नीतियों के खिलाफ दासदा से सुरेंदरनगर तक लामबंद होते दिखे। ये उत्तरी गुजरात के मंडल-बेचारजी क्षेत्र में 50,880 एकड़ जमीन पर प्रस्तावित 'स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन' को लेकर मोदी से बेहद खफा हैं।

कच्छ के सिखों को गुजरात छोड़ने का फरमानः वहीं कच्छ में मोदी की 'दमनकारी' नीतियों से सिख समुदाय में भी जबर्दस्त गुस्सा है। कच्छ के सिख समुदाय को गुजराती न होने के कारण जमीन बेचकर पंजाब चले जाने को कहा गया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) ने भी अपनी रिपोर्ट में भी यह बात मानी है। आयोग ने गुजरात के कच्छ में सिख समुदाय के 500 लोगों के साथ भेदभाव की बात कही है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने उनसे कहा गया कि वे गुजराती नहीं हैं, इसलिए अपनी जमीन बेचकर पंजाब चले जाएं। इसके लिए बॉम्बे टेनेंसी ऐंड ऐग्रिकल्चरल लैंड ऐक्ट 1948 का हवाला दिया गया।

कमिशन के सदस्य अजायब सिंह 24 से 28 जून को इलाके के दौरे का बाद अपनी यह रिपोर्ट फाइल की थी। सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है,'गुजरात के अल्पसंख्यक समुदाय को आतंकित करना मोदी की आदत में शुमार रहा है और इस केस में कच्छ के सिख परिवारों को निशाना बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है।'

बेचारजी इलाके में तो विरोध की बगावती आवाज घरों की दीवारों पर उकेर दी गई है। दीवारों पर लिखे इन आवाजों को पढ़ने की कोशिश करेंगे तो इनके तेवर बेहद तल्ख हैं। सरकार और कंपनी के लिए दो टूक अल्फाज में संदेश है कि हमारी जमीन पर हमारा हक है और हम किसी की नजर बर्दाश्त नहीं कर सकते। दालोद, वानोद और हंसलपुर गांव के ग्रामीण प्रशासन के खिलाफ अपनी बुलंद आवाज के साथ पूरी तरह से लामबंद हैं। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि जनता ने मुझे लगातार 3 बार भारी बहुमत गुजरात की कमान सौंपी है जो कि विकास के गुजराती मॉडल पर मुहर है। मोदी की यह दबंग शैली उनकी पहचान है।

हाल ही में नरेंद्र मोदी ने विदेशी न्यूज एजेंसी रॉयटर से एक विवादित इंटरव्यू में कहा था, 'इंडिया में बहुआयामी लोकतांत्रिक सिस्टम है, जहां कई सियासी जमातों की मौजूदगी विविध मतों के साथ है। यदि कोई हमें दो तिहाई बहुमत से तीन बार चुनता है, इसी से साफ होता जाता है कि लोग किस सच को महसूस करते हैं। हाल ही में गुजरात के विकास के पर उनके समर्थकों और आलोचकों में बहस भी हुई। आलोचकों का कहना है कि गुजरात समावेशी विकास की राह पर नहीं है। ऐसा दुनिया के जाने-माने इकॉनमिस्ट और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन का भी कहना है। अमर्त्य सेन ने कहा था कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री पद के लिए फिट नहीं हैं, क्योंकि अल्पसंख्यकों और सोशल डिवेलपमेंट में इनका बेहद खराब परफॉर्मेंस हैं।

दूसरी तरफ, चर्चित इकॉनमिस्ट जगदीश भगवती मोदी के डिवेलपमेंट मॉडल से इत्तेफाक रखते हैं। अर्थशास्त्री अरविंद पनगरिया ने भी नरेंद्र मोदी के डिवेलपमेंट मॉडल से सहमति जतायी है। गौरतलब है कि तीनों भारतीय मूल के अर्थशास्त्री कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कॉलिग्स हैं। अमर्त्य सेन ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि गुजरात में एजुकेशन और हेल्थकेयर की स्थिति बेहद निराशजनक है। नरेंद्र मोदी को इस पर ध्यान देना चाहिए। दूसरी तरफ मोदी को इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट पर भी ध्यान देना चाहिए। वहीं भगवती और पनगरिया ने मोदी की कई क्षेत्रों में विकास के लिए तारीफ की।

इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने कहा कि गुजरात में हाई ग्रोथ रेट के साथ प्रति व्यक्ति आय भी संतुलित गति के साथ बढ़ी है। इस कवायद से गुजरात राजस्व बढ़ाने में सफल रहा है। इसके साथ ही गुजरात में गुड गवर्नेंस का भी माहौल है। पनगरिया और भगवती ने मोदी की विकास नीति की कई आयामों को लेकर जमकर तारीफ की थी।

गुजरात इंस्टिट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट रिसर्च की डायरेक्टर अमिता शाह का कहना है कि गुजरात में हुए विकास पर कोई विवाद जैसी स्थिति नहीं है। अमिता ने कहा, 'पांच साल पहले राज्य की औसत ग्रोथ जीडीपी में 2.8% थी। मोदी के कार्यकाल 2002-03 और 2011-12 के बीच 10.3% पहुंच गई। सिर्फ 3 छोटे राज्य सिक्कीम, उत्तराखंड और दिल्ली की औसत ग्रोथ ज्यादा तेज है। गुजरात राष्ट्रीय औसत ग्रोथ (7.9%) से आगे है। महाराष्ट्र फैक्ट्री उत्पादन और ऐग्रिकल्चर ग्रोथ के साथ बिजली सुधार के मामले में गुजरात से आगे है। वहीं गुजरात सोशल डिवेलपमेंट के क्षेत्र में जूझ रहा है। खास करके महिला, स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी और मजदूरी पर बहुत कम काम हुए हैं। गुजरात में प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या महज 918 है जो राष्ट्रीय औसत 940 से कम है। शिशु मृत्यु दर के मामले में भी गुजरात का बेहद खराब रेकॉर्ड है। आर्थिक प्रगति के मामले में चौथे पायदान पर गुजरात गरीबी खत्म करने के मामले में 12वें नंबर पर है। अपर प्राइमरी स्कूल ड्रॉपआउट औसत कर्नाटक के बाद गुजरात दूसरे नंबर पर है। गुजरात में स्कूल ड्रॉपआउट औसत 29.3 फीसदी है।

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