Wednesday 10 October 2012

सूनी आंखों में तैरते सपने

पुस्तक समीक्षा
अजय पाण्डेय

प्रतापराव कदम का यह काव्य संग्रह ‘उसकी आंखों में कुछ’ एक ऐसी सामाजिक परिपाटी पर आधरित है जहां अराजकता और खोखले आदर्श हर कोने और हर स्तर पर बिखरे हुए हैं जहां कवि अपनी भावनात्मक परिपक्वता से प्रतिकार करता है। दरअसल इस संग्रह की कविताएं प्रश्न पूछती हुई प्रतीत होती हैं जो समाज में, मान्यताओं में और मानवीय भावनाओं में अपने औचित्य और अस्तित्व को तलाशती हैं। इन कविताओं में कस्बों और मध्यमवर्गीय लोगों की भावनाएं समाहित हैं जहां अराजकता का विस्तार नित्य फैलता जा रहा है। इन कविताओं में जीवन के कटु यथार्थ और उनमें छिपी संवदेना का खुरदरा स्पर्श निहित है। प्रतापराव कदम अपनी पैनी नजर से समाज के कौटिल्य चेहरे और विद्रूप खबरों की भी शिनाख्त करते हैं और मानवीय नृशंसता को भाष्य रूप प्रदान करते हैं। ‘निठारी तो हंडिया का एक चावल है’ और ‘नीम मुल्ला खतरा-ए-ईमान’ इस कड़ी की दो कविताएं हैं जो निठारी हत्याकांड और हैदराबाद में तसलीमा नासरीन पर हुए हमलों पर आधारित  है। इन कविताओं ने प्रतापराव कदम को राजनीतिक आधारित  भी प्रदान किया है जिससे वे प्रश्नवाची राजनीतिक कविता कर पाये हैं। इस संग्रह में शामिल कविताएं वैचारिक दृष्टिकोणों और मान्यताओं के सहारे एक ऐसा आवरण प्रस्तुत करती हैं जहां मनुष्य संघर्ष, यातनाएं, पीड़ा आदि कटु सत्यों से घिरा होता है। इस कड़ी में ‘हितैषी कहां सब्र करते हैं’, ‘लानत भेजता हूं’, ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है’, ‘किशोर त्रिपाठी आत्महत्या केस’ और ‘घृणा’ आदि ऐसी कई कविताएं हैं जो तल्ख सच्चाइयों को बयां करती हैं और ऐसा नहीं है कि ये सच्चाइयां सिर्फ मानवीय   संवेदनाओं के धरातल पर ही विद्यमान हैं बल्कि ये तो समाज और जीवन को भी बुरी तरह झकझोर रही हैं। ‘बाजार ही सत्य मृत्यु की तरह’ इसका प्रमाण है कि मनुष्य भविष्य में अपनी सभी उत्कंठाओं और सपनों को खो देगा। क्योंकि एक आदमी एक जगह से हटता है/हवा तुरन्त खाली जगह भर देती है। वैसे कवि इससे बाहर निकलकर जीवन की अन्य तल्ख छवियों को भी प्रस्तुत करता है। यह कितना औचित्यपूर्ण लेकिन रोचक है कि जब कवि एक तरफ समाज के विद्रुप चेहरे पर से पर्दा उठा रहा है तभी वह ‘लोटा’, ‘आसमान ही टूट पड़ेगा’, ‘डांगरिया’, ‘मेरे भूत भविष्य दोनों’, ‘सांस लेने भर से’ और ‘दुम’ आदि कई कविताएं भी चाटुकारिता, फूहड़ता, आत्ममुग्धता  को आधार बनाकर लिख रहा होता है जो एक सार्थकता और वैचारिक दृष्टिकोण पेश करता है। इस संग्रह की कुछ कविताएं जैसे ‘फ़ज़र की नमाज के वक्त इमलीपुरा’, ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है’, ‘विष्णु गणपत चौधुले, ‘खेल कबड्डी का’ या फिर  ‘कोसी नदी’ समाज से कुछ सवाल करती हुई नजर आती हैं। हालांकि यह बड़ा ही रोचक है कि कवि जीवन और समाज के हर ओर से कविता ढ़ूंढ़ लेता है और अपनी अभिव्यक्ति से एक सार्थकता दे पाता है। इसके अलावा, कई कविताएं हैं जो भारतीय समाज के परिदृश्यों, उनकी मौलिकता, इतिहासों और संवेदनाओं से उसे भाषायी भीड़ से परे ले जाती हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि कवि ने इस प्रकार की रचना कर एक साहसी कदम उठाया है। प्रतापराव कदम ने अपनी कविताओं से मानवीय चिन्ताओं को एक कैनवास पर उकेर कर एक विमर्श का मौका प्रदान करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं से उन लोगों को एक बल प्रदान किया है जो सामाजिक प्रपंचों, राजनीतिक आक्षेपों और धर्मिक क्षरण से कुंठित  हैं। इसमें लोगों की विवशता को सामने लाया गया है कि वो इन प्रपंचों के खिलाफ आवाज उठाए या अपनी इज्जत बचाए। जैसे- मैं आदमी नहीं पैजामा, वह भी बिना नाड़े का/ दोनों हाथ जेब में, बचाए, बनाए हुए इज्जत। (पैजामा)। वैसे ‘फेसबुक’ को लेकर क्षोभ भी व्यक्त किया गया है कि युवा वर्ग कैसे एक मायावी और छद्म दुनिया में विचरण कर रहा है। जहां सब कुछ तो है लेकिन नकली और निरर्थक। ये भ्रामक परम्परा सिपर्फ यहीं नहीं दिखती बल्कि यहां से निकलकर ‘कागज’ पर भी दिखती है क्योंकि हमारे देश में अधिकांश काम कागजों पर ही होते हैं जो ‘फेसबुक’ की तरह छलावा मात्र है। वैसे ‘इस तरह वसंत’ इसी कड़ी का अगला हिस्सा माना जा सकता है जहां जीवन की सच्चाई पर एक भ्रामक और फरेबी आवरण ओढ़ा दिया जाता है, लेकिन मनुष्य फिर  भी चलता जाता है बिल्कुल उस साइकिल की तरह जिसमें दोनों पहिए उस दम्पति की पहचान हैं जिसमें एक की लाचारी दूसरे की रफ़्तार  को थाम सकती है। 
बहरहाल, इस संग्रह की कई अन्य कविताएं ऐसी हैं जो सटीक प्रभाव छोड़ती हैं और स्पष्ट करती हैं कि प्रतापराव कदम इन कविताओं के माध्यम से राजनीतिक, धर्मिक और सामाजिक अपकृत्यों पर प्रहार कर रहे हैं। वे इन सबके विरूद्ध  होने वाले आंदोलन, अनशन के समानान्तर भाषायी हथियार भी उपलब्ध् कराते हैं। इन कविताओं की भाषा सरल और सहज है जिससे किसी प्रकार को कोई भ्रम नहीं पैदा होता है और यदि होता भी है तो पाठक उसको पोषित कर अपने आप को समृद्ध  करता है। 

उसकी आँखों में कुछ; प्रताप राव कदम 
राधाकृष्ण  प्रकाशन  


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