Saturday 2 February 2013

सलाखों के पीछे से झांकती सच्चाई


पुस्तक समीक्षा
अजय पाण्डेय

अभी हाल में कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सीमा पर जो घटनाएं हुई हैं और पाक के जो नापाक इरादे जाहिर हुए हैं उसके आलोक में पाकिस्तान में मानवाधिकार  कार्यकर्ता और वहां की जेल में बंद भारतीय मुल्क के कैदी सरबजीत सिंह के वकील अवैश शेख़ की पुस्तक ‘सरबजीत सिंह की अजीब दास्तान’ का  अध्ययन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। दरअसल यह पुस्तक वास्तव में सरबजीत सिंह की उस दास्तान को प्रस्तुत करती है जो उसने एक गलत पहचान के कारण अनुभव किया है। यह पुस्तक सरबजीत सिंह के 22 साल के उस स्याह जीवन पर से पर्दा उठाती है जो उसने सलाखों के पीछे बीता दी। यह पुस्तक प्रमाण है उस बात की जहां भारत और पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते रिश्ते सरबजीत सिंह और उसकी रिहाई को प्रभावित करते रहे। यह पुस्तक सरबजीत सिंह की तरफ से केस लड़ते हुए अवैश शेख़ का अनुभव है जिसमें उन्होंने बड़ी साफगोशी से केस के हर पक्ष पर तटस्थ रहते हुए प्रकाश डाला है। इस केस के सन्दर्भ में वे पाक सरकार, कट्टरपंथ, पुलिस और मीडिया सबकी आंखों में किरकिरी बने हुए थे, इस दौरान उन्होंने उस दौर को भी देखा जब पाकिस्तान में उनके कार्यालय को निशाना बनाया गया और शहर में उनके पुतले जलाए गए। पाकिस्तान में उन्हें लोग कभी भारत के एजेन्ट कहते रहे तो कभी ये कहा कि वे ये सब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कर रहे हैं। बावजूद इसके उन्होंने तटस्थ होकर अपना और सरबजीत का पक्ष रखा। हालांकि सरबजीत सिंह के बारे में आम लोगों की अज्ञानता के लिए पाक हुकूमत ही दोषी है क्योंकि उसे भारतीय गुप्तचर और फैसलाबाद और लाहौर में बम धमाके  का दोषी ठहराया गया। 
पुस्तक का जब क्रमवार अध्ययन करते हैं तो एक नाम आता है मंजीत सिंह का।  दरअसल यह वही मंजीत है जो फैसलाबाद और लाहौर में हुए बम धमाके  में संलिप्त था लेकिन गलत पहचान ने उस सरबजीत सिंह को भारतीय आतंकवादी घोषित कर दिया जो 29-30 अगस्त, 1990 की रात को गलती से पाकिस्तानी सीमा में चला गया था तथा बिना किसी वास्तविकता को सामने लाए उसका ट्रायल कर दिया गया और सुना दी गई फांसी की सजा। पुस्तक में पृष्ठांकित ये दस्तावेज इस बात को पुष्ट करते हैं कि यह पूरा मामला गलत पहचान से जुड़ा है और सरबजीत सिंह को जो सजा सुनाई गई है वो दरअसल में मंजीत सिंह को सुनाई गई थी लेकिन पाकिस्तानी कानून और पुलिस की लापरवाही ने न सिर्फ मंजीत सिंह को पाकिस्तान से बाहर निकलने में मदद की बल्कि सरबजीत सिंह को मौत के मुंह में धमाके  दिया। पुस्तक के अन्य पक्ष की जब बात करते हैं तो यह स्पष्ट है कि यह पुस्तक एक दस्तावेज है, एक आपबीती है जिसमें लेखक ने 22 सालों से दूसरे मुल्क की जेल में बंद सरबजीत सिंह द्वारा अपने परिवार और भारत सरकार को लिखे पत्र को भी शामिल किया है जो अपनी मार्मिकता से पुस्तक को और प्रभावी बना देता है। इन सबके बीच सरबजीत के परिवार विशेषकर उसकी बहन दलबीर कौर और उसकी दोनों बेटियां पूनमदीप और स्पप्नदीप के साहस और उनके हौंसले को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिन्होंने सरबजीत के केस को न सिर्फ हिन्दुस्तान में बल्कि पाकिस्तान में भी जिन्दा रखा है। हिन्दुस्तान में समय-समय पर सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए जो अभियान चलाए जा रहे हैं वो भी महत्वपूर्ण कड़ी हैं। पुस्तक इस परत पर से भी पर्दा उठाने का कार्य करती है कि सरबजीत सिंह को लेकर पाकिस्तान में जनमानस की सोच बदलने लगी है। पुस्तक इस लिहाज से सराहनीय है कि इसके आखिरी परिशिष्ट  में उन भारतीय कैदियों के नाम और पते बताए गए हैं जो वर्षों से पाकिस्तानी जेल में बंद हैं। 
बहरहाल सरबजीत सिंह मामले को लेकर अवैश शेख़ की यह मुहिम काफी सराहनीय है। सरबजीत को लेकर पाकिस्तान या भारत में जो शंकाएं व्याप्त हैं उसे  दूर करने में यह पुस्तक काफी  सहयोग करेगी और लेखक का उद्देश्य भी यही है। इस पुस्तक में पाकिस्तानी पक्ष की कई तल्ख़ सच्चाइयां छिपी हैं जिसे लेखक ने अब तक जांच-पड़ताल में देखा और अनुभव किया है। 
सरबजीत सिंह की अजीब दास्तानः अवैस शेख़
राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग
नई दिल्ली- 110 002
कीमतः 195रु.

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